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भुवनकोशविस्तारे स्वायम्भुवमनुवंशकीर्तनम् -
महाराज मनुकी वंश-परम्पराका वर्णन -
श्रीनारायण उवाच महीं देव: प्रतिष्ठाप्य यथास्थाने च नारद । वैकुण्ठलोकमगमद् ब्रह्मोवाच स्वमात्मजम् ॥ १ ॥
श्रीनारायण बोले-हे नारद ! इस प्रकार पृथ्वीको यथास्थान प्रतिष्ठित करके भगवान् जब वैकुण्ठ चले गये तब ब्रह्माजीने अपने पुत्रसे कहा- ॥ १ ॥
स्वायम्भूव महाबाहो पुत्र तेजस्विनांवर । स्थाने महीमये तिष्ठ प्रजाः सृज यथोचितम् ॥ २ ॥ देशकालविभागेन यज्ञेशं पुरुषं यज । उच्चावचपदार्थैश्च यज्ञसाधनकैर्विभो ॥ ३ ॥ धर्ममाचर शास्त्रोक्तं वर्णाश्रमनिबन्धनम् । एतेन क्रमयोगेन प्रजावृद्धिर्भविष्यति ॥ ४ ॥ पुत्रानुत्पाद्य गुणतः कीर्त्या कान्त्यात्मरूपिणः । विद्याविनयसम्पन्नान् सदाचारवतां वरान् ॥ ५ ॥ कन्याश्च दत्त्वा गुणवद्यशोवद्भ्यः समाहितः । मन: सम्यक् समाधाय प्रधानपुरुषे परे ॥ ६ ॥ भक्तिसाधनयोगेन भगवत्परिचर्यया । गतिमिष्टां सदा वन्द्यां योगिनां गमिता भवान् ॥ ७ ॥
तेजस्वियोंमें श्रेष्ठ तथा विशाल भुजाओंवाले हे पुत्र स्वायम्भुव ! अब तुम उस स्थलमय स्थानपर रहकर समुचित रूपसे प्रजाओंकी सृष्टि करो । हे विभो ! देश एवं कालके विभागके अनुसार यज्ञके साधनस्वरूप उत्तम तथा मध्यम सामग्रियोंसे यज्ञके स्वामी परम पुरुषका यजन करो; शास्त्रोंमें वर्णित धर्मका आचरण करो और वर्णाश्रम-व्यवस्थाका पालन करो । इस क्रमसे प्रवृत्त रहनेपर प्रजा-वृद्धि होती रहेगी । विद्या-विनयसे सम्पन्न, सदाचारियोंमें श्रेष्ठ और अपने गुण, कीर्ति तथा कान्तिके अनुरूप पुत्र उत्पन्न करके कन्याओंको गुणी तथा यशस्वी पुरुषोंको अर्पण करके और एकाग्रचित्त होकर अपने मनको पूर्णरूपसे प्रधान पुरुष परमेश्वरमें स्थित करके भक्तिपूर्वक साधना तथा भगवानकी सेवाद्वारा आप योगियोंके लिये सदा वन्दनीय अभीष्ट गतिको प्राप्त कर लोगे ॥ २-७ ॥
इत्याश्वास्य मनुं पुत्र पद्मयोनिः प्रजापति: । प्रजासर्गे नियम्यामुं स्वधाम प्रत्यपद्यत ॥ ८ ॥
[हे नारद !] इस प्रकार अपने पुत्र स्वायम्भुव मनुको उपदेश देकर तथा उन्हें प्रजा-सृष्टिके कार्यमें नियुक्त करके पायोनि ब्रह्माजी अपने धामको चले गये ॥ ८ ॥
'हे पुत्र ! प्रजाओंका सृजन करो' पिताकी इस आज्ञाको पृथ्वीपति स्वायम्भुव मनुने हृदयमें धारण कर लिया और वे प्रजा-सृष्टि करने लगे ॥ ९ ॥
प्रियव्रतोत्तानपादौ मनुपुत्रौ महौजसौ । कन्यास्तिस्रः प्रसूताश्च तासां नामानि मे शृणु ॥ १० ॥ आकूतिः प्रथमा कन्या द्वितीया देवहूतिका । तृतीया च प्रसूतिर्हि विख्याता लोकपावनी ॥ ११
मनुसे प्रियव्रत तथा उत्तानपाद नामक दो महान् ओजस्वी पुत्र और तीन कन्याएँ उत्पन्न हुई, उनके नाम मुझसे सुनिये; पहली कन्या आकूति, दूसरी देवहूति तथा लोकपावनी तीसरी कन्या प्रसूति नामसे विख्यात हई ॥ १०-११ ॥
आकूतिं रुचये प्रादात्कर्दमाय च मध्यमाम् । दक्षायादात्प्रसूतिं च यासां लोक इमाः प्रजाः ॥ १२ ॥
उन्होंने आकूतिका रुचिके साथ, मध्यम कन्या देवहूतिका कर्दमके साथ और प्रसूतिका विवाह दक्षप्रजापतिके साथ कर दिया, जिनकी ये प्रजाएँ लोकमें फैली हुई हैं ॥ १२ ॥
रुचेः प्रजज्ञे भगवान् यज्ञो नामादिपूरुषः । आकूत्यां देवहूत्यां च कपिलोऽसौ च कर्दमात् ॥ १३ ॥ सांख्याचार्यः सर्वलोके विख्यातः कपिलो विभुः । दक्षात्प्रसूत्यां कन्याश्च बहुशो जज्ञिरे प्रजाः ॥ १४ ॥ यासां सन्तानसम्भूता देवतिर्यङ्नरादयः । प्रसूता लोकविख्याता सर्वे सर्गप्रवर्तकाः ॥ १५ ॥
रुचिके द्वारा आकूतिसे यज्ञरूप भगवान् आदिपुरुष प्रकट हुए । कर्दमऋषिके द्वारा देवहूतिसे कपिल उत्पन्न हुए । परम ऐश्वर्यशाली उन कपिलमुनिने सभी लोकोंमें सांख्यशास्त्रके आचार्यके रूपमें प्रसिद्धि प्राप्त की । इसी प्रकार दक्षके द्वारा प्रसूतिसे सन्तानके रूपमें बहुत-सी कन्याएँ उत्पन्न हुईं, जिनकी सन्तानोंके रूपमें देवता, पशु और मानव आदि उत्पन्न होकर लोकमें प्रसिद्ध हुए; वे सभी इस सृष्टिके प्रवर्तक हैं ॥ १३-१५ ॥
यज्ञश्च भगवान् स्वायम्भुवमन्वन्तरे विभुः । मनुं ररक्ष रक्षोभ्यो यामैर्देवगणैर्वृतः ॥ १६ ॥
सर्वसमर्थ भगवान् यज्ञपुरुषने याम नामक देवताओंके साथ मिलकर स्वायम्भुव मन्वन्तरमें राक्षसोंसे मनुकी रक्षा की थी ॥ १६ ॥
कपिलोऽपि महायोगी भगवान् स्वाश्रमे स्थितः । देवहूत्यै परं ज्ञानं सर्वाविद्यानिवर्तकम् ॥ १७ ॥
महान् योगी भगवान् कपिलने अपने आश्रममें रहकर माता देवहूतिको सभी अविद्याओंका नाश करनेवाले परमज्ञानका उपदेश किया था ॥ १७ ॥
सविशेषं ध्यानयोगमध्यात्मज्ञाननिश्चयम् । कापिलं शास्त्रमाख्यातं सर्वाज्ञानविनाशनम् ॥ १८ ॥
उन्होंने ध्यानयोग तथा अध्यात्मजानके सिद्धान्तका विशेषरूपसे प्रतिपादन किया । समस्त अज्ञानको नष्ट करनेवाला उनका शास्त्र कापिल शास्त्रके रूपमें प्रसिद्ध हुआ ॥ १८ ॥
उपदिश्य महायोगी स ययौ पुलहाश्रमम् । अद्यापि वर्तते देवः सांख्याचार्यो महाशयः ॥ १९ ॥
वे महायोगी कपिल अपनी माताको उपदेश देकर ऋषि पुलहके आश्रमपर चले गये । सांख्यशास्त्रके आचार्य महान् यशस्वी भगवान् कपिल आज भी विद्यमान हैं ॥ १९ ॥