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॥ ॐ परमात्मने नमः ॥
॥ श्रीअग्निपुराणम् ॥
द्वाविंशोऽध्यायः ॥ पूजाधिकारार्थं सामान्यः स्नानविधिः -
पूजाके अधिकारकी सिद्धिके लिये सामान्यतः स्नान-विधि - नारद उवाच - वक्ष्ये स्नानं क्रियाद्यर्थं नृसिंहेन तु मृत्तिकाम् । गृहीत्वा तां द्विधा कृत्वा मनःस्नानमथैकया ॥ १ ॥ निमज्याचम्य विन्यस्य सिंहेन कृतरक्षकः । विधिस्नानं ततः कुर्यात् प्राणायामपुरःसरम् ॥ २ ॥ हृदि ध्यायन् हरिज्ञानं मन्त्रेणाष्टाक्षरेण हि । त्रिधा पाणितले मृत्स्नां दिग्बन्धं सिंहजप्ततः ॥ ३ ॥ वासदेवप्रजप्तेन तीर्थं सङ्कल्प्य चालभेत् । गात्रं वेदादिना मन्त्रैः सम्मार्ज्याराध्य मूर्तिना ॥ ४ ॥ कृत्वाघमर्षणं वस्त्रं परिधाय समाचरेत् । विन्यस्य मन्त्रैः द्विर्मार्ज्यं पाणिस्थं जलमेव च ॥ ५ ॥ नारायणेन संयम्य वायुमाघ्राय चोत्सृजेत् । जलं ध्यायन् हरिं पश्चाद्दत्वार्घ्यं द्वादशाक्षरम् ॥ ६ ॥ जप्त्वान्याञ्छतशस्तस्य योगपीठादितः क्रमात् । मन्त्रान् दिक्पालपर्यन्तान् ऋषीन् पितृगणानपि ॥ ७ ॥ मनुष्यान् सर्वभूतानि स्थावरान्तान्यथावसेत् । न्यस्य चाङ्गानि संहृत्य मन्त्रान्यागगृहं व्रजेत् । एवमन्यासु पूजासु मूलाद्यैः स्नानमाचरेत् ॥ ८ ॥ नारदजी बोले-विप्रवरो ! पूजन आदि क्रियाओंके लिये पहले स्नान-विधिका वर्णन करता हूँ । पहले नृसिंह-सम्बन्धी बीज या मन्त्रसे' मृत्तिका हाथमें ले । उसे दो भागोंमें विभक्त कर एक भागके द्वारा (नाभिसे लेकर पैरोंतक लेपन करे, फिर दूसरे भागके द्वारा) अपने अन्य सब अङ्गोंमें लेपन कर मल-स्रान सम्पन्न करे । तदनन्तर शुद्ध नानके लिये जलमें डुबकी लगाकर आचमन करे । 'नृसिंह'-मन्त्रसे न्यास करके आत्मरक्षा करे । इसके बाद (तन्त्रोक्त रीतिसे) विधि-सान करे और प्राणायामादिपूर्वक हृदयमें भगवान् विष्णुका ध्यान करते हुए 'ॐ नमो नारायणाय' इस अष्टाक्षर-मन्त्रसे हाथमें मिट्टी लेकर उसके तीन भाग करे । फिर नृसिंह-मन्त्रके जपपूर्वक (उन तीनों भागोंसे तीन बार) दिग्बन्ध करे । इसके बाद 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय । ' इस वासुदेव-मन्त्रका जप करके संकल्पपूर्वक तीर्थजलका स्पर्श करे । फिर वेद आदिके मन्त्रोंसे अपने शरीरका और आराध्यदेवकी प्रतिमा या ध्यानकल्पित विग्रहका मार्जन करे । इसके बाद अघमर्षण-मन्त्रका जपकर वस्त्र पहनकर आगेका कार्य करे । पहले अङ्गन्यास कर मार्जन-मन्त्रोंसे मार्जन करे । इसके बाद हाथमें जल लेकर नारायण-मन्त्रसे प्राण-संयम करके जलको नासिकासे लगाकर सूंघे । फिर भगवान्का ध्यान करते हुए जलका परित्याग कर दे । इसके बाद अर्घ्य देकर ('ॐ नमो भगवते वासुदेवाय । ' इस) द्वादशाक्षर-मन्त्रका जप करे । फिर अन्य देवता आदिका भक्तिपूर्वक तर्पण करे । योगपीठ आदिके क्रमसे दिक्पालतकके मन्त्रों और देवताओंका, ऋषियोंका, पितरोंका, मनुष्योंका तथा स्थावरपर्यन्त सम्पूर्ण भूतोंका तर्पण करके आचमन करे । फिर अङ्गन्यास करके अपने हृदयमें मन्त्रोंका उपसंहार कर पूजन-मन्दिरमें प्रवेश करे । इसी प्रकार अन्य पूजाओंमें भी मूल आदि मन्त्रोंसे स्नान कार्य सम्पन्न करे ॥ १-८ ॥ इति आदिमहापुराणे आग्नेये सामान्यपूजाविधिवर्णनं नाम द्वाविंशोध्यायः ॥ २२ ॥ इस प्रकार आदि आग्नेय महापुराणमें 'पूजाके लिये सामान्यतः स्नान-विधिका वर्णन' नामक बाईसर्वां अध्याय पूरा हुआ ॥ २२ ॥ हरिः ॐ तत्सत् |