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श्रीमद्‌देवीभागवत महापुराण
द्वादशः स्कन्धः
षष्ठोऽध्यायः

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गायत्रीसहस्रनामस्तोत्रवर्णनम् -
गायत्रीसहस्त्रनामस्तोत्र तथा उसके पाठका फल -


नारद उवाच
भगवन्सर्वधर्मज्ञ सर्वशास्त्रविशारद ।
श्रुतिस्मृतिपुराणानां रहस्यं त्वन्मुखाच्छ्रुतम् ॥ १ ॥
सर्वपापहरं देव येन विद्या प्रवर्तते ।
केन वा ब्रह्मविज्ञानं किं नु वा मोक्षसाधनम् ॥ २ ॥
ब्राह्मणानां गतिः केन केन वा मृत्युनाशनम् ।
ऐहिकामुष्मिकफलं केन वा पद्मलोचन ॥ ३ ॥
वक्तुमर्हस्यशेषेण सर्वं निखिलमादितः ।
नारदजी बोले-सभी धर्मोको जाननेवाले तथा सभी शास्त्रोंमें निष्णात हे भगवन् । मैंने आपके मुखसे श्रुतियों, स्मृतियों तथा पुराणोंसे सम्बद्ध सभी प्रकारके पापोंका नाश करनेवाला वह रहस्य सुन लिया, जिससे विद्याकी प्राप्ति होती है । हे देव ! किसके द्वारा ब्रह्मज्ञान प्राप्त होता है और मोक्षका साधन क्या है ? हे कमलनयन ! किस साधनसे ब्राह्मणोंको उत्तम गति मिलती है, किससे मृत्युका नाश होता है ? और किसके आश्रयसे मनुष्यको इहलोक तथा परलोकमें उत्तम फल प्राप्त होता है ? इस सम्बन्धमें प्रारम्भसे लेकर सम्पूर्ण बातें विस्तारपूर्वक बतानेकी कृपा कीजिये ॥ १-३.५ ॥

श्रीनारायण उवाच
साधु साधु महाप्राज्ञ सम्यक् पृष्टं त्वयानघ ॥ ४ ॥
शृणु वक्ष्यामि यत्‍नेन गायत्र्यष्टसहस्रकम् ।
नाम्नां शुभानां दिव्यानां सर्वपापविनाशनम् ॥ ५ ॥
श्रीनारायण बोले-हे महाप्राज्ञ ! हे अनघ ! आपको साधुवाद है, जो आपने इतनी उत्तम बात पूछी है । सुनिये, मैं प्रयत्नपूर्वक गायत्रीके दिव्य तथा मंगलकारी एक हजार आठ नामोंवाले सर्वपापहारीस्तोत्रका वर्णन करता हूँ ॥ ४-५ ॥

सृष्ट्यादौ यद्‍भगवता पूर्वं प्रोक्तं ब्रवीमि ते ।
अष्टोत्तरसहस्रस्य ऋषिर्ब्रह्मा प्रकीर्तितः ॥ ६ ॥
छन्दोऽनुष्टुप् तथा देवी गायत्री देवता स्मृता ।
हलो बीजानि तस्यैव स्वराः शक्तय ईरिताः ॥ ७ ॥
अङ्‌गन्यासकरन्यासावुच्येते मातृकाक्षरैः ।
पूर्वकालमें सृष्टिके आदिमें भगवान्ने जिसे कहा था, वही मैं आपको बता रहा हूँ । इस एक हजार आठ नामवाले स्तोत्रके ऋषि ब्रह्माजी कहे गये हैं । अनुष्टुप् इसका छन्द है तथा भगवती गायत्री इसकी देवता कही गयी हैं । हल् (व्यंजन) वर्ण इसके बीज और स्वर इसकी शक्तियाँ कही गयी हैं । मातृकामन्त्रके छ: अक्षर ही इसके छ: अंगन्यास और करन्यास कहे जाते हैं ॥ ६-७.५ ॥

अथ ध्यानं प्रवक्ष्यामि साधकानां हिताय वै ॥ ८ ॥
रक्तश्वेतहिरण्यनीलधवलैर्युक्तां त्रिनेत्रोज्ज्वलां
रक्तां रक्तनवस्रजंमणिगणैर्युक्तां कुमारीमिमाम् ।
गायत्रीं कमलासना करतलव्यानद्धकुण्डाम्बुजां
पद्माक्षीं च वरस्रजं च दधतीं हंसाधिरूढां भजे ॥ ९ ॥
अब साधकोंके कल्याणके लिये देवीका ध्यान बताता हूँ । रक्त-श्वेत-पीत-नील एवं धवलवर्ण (-वाले मुखों)-से सम्पन्न, तीन नेत्रोंसे देदीप्यमान विग्रहवाली, रक्तवर्णवाली, नवीन रक्तपुष्पोंकी माला धारण करनेवाली, अनेक मणिसमूहोंसे युक्त, कमलके आसनपर विराजमान, अपने दो हाथोंमें कमल और कुण्डिका एवं अन्य दो हाथोंमें वर तथा अक्षमाला धारण करनेवाली, कमलके समान नेत्रोंवाली, हंसपर विराजमान रहनेवाली तथा कुमारी अवस्थासे सम्पन्न भगवती गायत्रीकी मैं उपासना करता हूँ ॥ ८-९ ॥

अचिन्त्यलक्षणाव्यक्ताप्यर्थमातृमहेश्वरी ।
अमृतार्णवमध्यस्थाप्यजिता चापराजिता ॥ १० ॥
अणिमादिगुणाधाराप्यर्कमण्डलसंस्थिता ।
अजराजापराधर्मा अक्षसूत्रधराधरा ॥ ११ ॥
[देवीके सहस्रनाम इस प्रकार हैं-] १. अचिन्त्यलक्षणा (बुद्धिकी पहुँचसे परे लक्षणोंवाली) २. अव्यक्ता, ३. अर्थमातृमहेश्वरी (अर्थ आदि पार्थिव पदार्थोक परिच्छेदक ब्रह्मा आदि देवताओंपर नियन्त्रण करनेवाली) ४. अमृता (अमृतस्वरूपिणी), ५. अर्णवमध्यस्था (समुद्रके भीतर विराजमान रहनेवाली), ६. अजिता, ७. अपराजिता ८. अणिमादिगुणाधारा (अणिमा आदि सिद्धियोंकी आश्रयभूता), ९. अर्कमण्डलसंस्थिता (सूर्यमण्डलमें विराजमान), १०. अजरा (सदा तरुण अवस्थामें रहनेवाली), ११. अजा (जन्मरहित), १२. अपरा (जिनसे अतिरिक्त कोई दूसरा नहीं है), १३. अधर्मा (जात्यादिनिमित्तक लोकधर्मोसे रहित), १४. अक्षसूत्रधरा (अक्षसूत्र धारण करनेवाली), १५. अधरा (अपने ही आधारपर स्थित) ॥ १०-११ ॥

अकारादिक्षकारान्ताप्यरिषड्वर्गभेदिनी ।
अञ्जनाद्रिप्रतीकाशाप्यञ्जनाद्रिनिवासिनी ॥ १२ ॥
१६. अकारादिक्षकारान्ता (जिनके आदिमें अकार तथा अन्तमें क्षकार है, वे वर्णमातृकास्वरूपिणी देवी), १७. अरिषड्वर्गभेदिनी (काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद एवं मात्सर्य-इन छ: प्रकारके शत्रओंका भेदन करनेवाली), १८. अञ्जनाद्रिप्रतीकाशा (अंजनगिरिके समान कृष्णवर्णकी प्रभासे सुशोभित), १९. अजनाद्रिनिवासिनी (अंजनगिरिपर निवास करनेवाली) ॥ १२ ॥

अदितिश्चाजपाविद्याप्यरविन्दनिभेक्षणा ।
अन्तर्बहिःस्थिताविद्याध्वंसिनीचान्तरात्मिका ॥ १३ ॥
२०. अदितिः (देवताओंकी माता), २१. अजपा (अजपाजपरूपिणी), २२. अविद्या (माया), २३. अरविन्दनिभेक्षणा (कमलसदृश नेत्रोंवाली), २४. अन्तर्बहिःस्थिता (सभीके भीतर तथा बाहर स्थित रहनेवाली), २५. अविद्याध्वंसिनी (अविद्याका नाश करनेवाली), २६. अन्तरात्मिका (सभीके अन्त:करणमें विराजमान रहनेवाली) ॥ १३ ॥

अजा चाजमुखावासाप्यरविन्दनिभानना ।
अर्धमात्रार्थदानज्ञाप्यरिमण्डलमर्दिनी ॥ १४ ॥
२७. अजा (जन्मसे रहित प्रकृतिस्वरूपिणी), २८. अजमुखावासा (ब्रह्माके मुखमें निवास करनेवाली), २९. अरविन्दनिभानना (कमलके समान प्रफुल्लित मुखवाली), ३०. अर्थमात्रा (प्रणवांगभूत अर्धमात्रास्वरूपा), ३१. अर्थदानज्ञा (धर्म आदि चारों पुरुषार्थोका दान करनेमें कुशल), ३२. अरिमण्डलमर्दिनी (शत्रु-समूहोंका मर्दन करनेवाली) ॥ १४ ॥

असुरघ्नीह्यमावास्याप्यलक्ष्मीघ्न्यन्त्यजार्चिता ।
आदिलक्ष्मीश्चादिशक्तिराकृतिश्चायतानना ॥ १५ ॥
३३. असुरनी (राक्षसोंका संहार करनेवाली), ३४. अमावास्या (अमावस्यातिथिरूपा), ३५. अलक्ष्मीघ्यन्त्यजाचिंता (अलक्ष्मीका संहार करनेवाली अन्त्यजा-मातंगीदेवीसे अर्चित होनेवाली), ३६. आदिलक्ष्मीः, ३७. आदिशक्तिः (महामाया), ३८. आकृतिः (आकारस्वरूपिणी), ३९. आयतानना (विशाल मुखवाली) ॥ १५ ॥

आदित्यपदवीचाराप्यादित्यपरिसेविता ।
आचार्यावर्तनाचाराप्यादिमूर्तिनिवासिनी ॥ १६ ॥
४०. आदित्यपदवीचारा (आदित्यमार्गपर चलनेवाली सूर्यगतिरूपा), ४१. आदित्यपरिसेविता (सूर्य आदि देवताओंसे सुसेवित), ४२. आचार्या (सदाचारकी व्याख्या करनेवाली), ४३. आवर्तना (भ्रमणशील जगत्की रचना करनेवाली), ४४. आचारा (आचारस्वरूपिणी), ४५. आदिमूर्तिनिवासिनी (आदिमूर्ति अर्थात् ब्रह्ममें निवास करनेवाली) ॥ १६ ॥

आग्नेयी चामरी चाद्या चाराध्या चासनस्थिता ।
आधारनिलयाधारा चाकाशान्तनिवासिनी ॥ १७ ॥
४६. आग्नेयी (अग्निकी अधिष्ठात्री), ४७. आमरी (देवताओंकी पुरी जिनका रूप माना जाता है), ४८. आद्या (आदिस्वरूपिणी), ४९. आराध्या (सभीके द्वारा आराधित), ५०. आसनस्थिता (दिव्य आसनपर विराजमान रहनेवाली), ५१. आधारनिलया (मूलाधारमें निवास करनेवाली कुण्डलिनीस्वरूपिणी), ५२. आधारा (जगत्को धारण करनेवाली), ५३. आकाशान्तनिवासिनी (आकाशतत्त्वके अन्तरूप अहंकारमें निवास करनेवाली) ॥ १७ ॥

आद्याक्षरसमायुक्ता चान्तराकाशरूपिणी ।
आदित्यमण्डलगता चान्तरध्वान्तनाशिनी ॥ १८ ॥
५४. आद्याक्षरसमायुक्ता (आदि अक्षर अर्थात् अकारसे युक्त), ५५. आन्तराकाशरूपिणी (दहराकाशरूपिणी), ५६. आदित्यमण्डलगता (सूर्यमण्डलमें विद्यमान), ५७. आन्तरध्वान्तनाशिनी (अज्ञानरूप आन्तरिक अन्धकारका नाश करनेवाली) ॥ १८ ॥

इन्दिरा चेष्टदा चेष्टा चेन्दीवरनिभेक्षणा ।
इरावती चेन्द्रपदा चेन्द्राणी चेन्दुरूपिणी ॥ १९ ॥
५८. इन्दिरा (लक्ष्मी), ५९. इष्टदा (मनोरथ पूर्ण करनेवाली), ६०. इष्टा (साधकोंकी अभीष्ट देवतारूपिणी), ६१. इन्दीवरनिभेक्षणा (सुन्दर नीलकमलके समान नेत्रोंवाली), ६२. इरावती (इरा अर्थात् पृथ्वीसे युक्त), ६३. इन्द्रपदा (अपनी कृपासे इन्द्रको पद दिलानेवाली), ६४. इन्द्राणी (शचीरूपसे विराजमान), ६५. इन्दुरूपिणी (चन्द्रमाके समान सुन्दर रूपवाली) ॥ १९ ॥

इक्षुकोदण्डसंयुक्ता चेषुसन्धानकारिणी ।
इन्द्रनीलसमाकारा चेडापिङ्‌गलरूपिणी ॥ २० ॥
६६. इक्षुकोदण्डसंयुक्ता (हाथमें इक्षुका धनुष धारण करनेवाली), ६७. इषुसन्धानकारिणी (बाणोंका संधान करनेमें दक्ष), ६८. इन्द्रनीलसमाकारा (इन्द्रनीलमणिके समान प्रभावाली), ६९. इडापिङ्‌गलरूपिणी (इडा और पिंगला आदि नाड़ीरूपिणी) ॥ २० ॥

इन्द्राक्षी चेश्वरी देवी चेहात्रयविवर्जिता ।
उमा चोषा ह्युडुनिभा उर्वारुकफलानना ॥ २१ ॥
७०. इन्द्राक्षी (शताक्षी नामवाली देवी), ७१. ईश्वरी देवी (अखिल ऐश्वयोंसे युक्त भगवती), |७२. ईहात्रयविवर्जिता (तीन प्रकारकी ईहा अर्थात् लोकैषणा, वित्तैषणा और पुत्रैषणासे रहित), ७३. उमा, ७४. उषा, ७५. उडुनिभा (नक्षत्रके सदृश प्रभावाली), ७६. उर्वारुकफलानना (ककड़ीके फलके समान सदा प्रफुल्लित मुखवाली) ॥ २१ ॥

उडुप्रभा चोडुमती ह्युडुपा ह्युडुमध्यगा ।
ऊर्ध्वं चाप्यूर्ध्वकेशी चाप्यूर्ध्वाधोगतिभेदिनी ॥ २२ ॥
७७. उडुप्रभा (जलके समान वर्णवाली), ७८. उडुमती (रात्रिरूपिणी), ७९. उडुपा (चन्द्रमा अथवा नौकारूपिणी),८०. उडुमध्यगा (नक्षत्रमण्डलके मध्य विराजमान), ८१. ऊर्ध्वम् (ऊर्ध्वदेशरूपिणी), ८२. ऊर्ध्वकेशी (ऊपरकी ओर उठे हुए केशोंवाली), ८३. ऊर्ध्वाधोगतिभेदिनी (ऊर्ध्वगति अर्थात् स्वर्ग और अधोगति अर्थात् नरक दोनोंका भेदन करनेवाली) ॥ २२ ॥

ऊर्ध्वबाहुप्रिया चोर्मिमालावाग्ग्रन्थदायिनी ।
ऋतं चर्षिर्ऋतुमती ऋषिदेवनमस्कृता ॥ २३ ॥
८४. ऊवंबाहुप्रिया (भुजाओंको ऊपर उठाकर आराधना करनेवाले भक्तोंसे प्रेम करनेवाली), ८५. ऊर्मिमालावाग्ग्रन्थदायिनी (तरंगमालाओंके समान श्रेष्ठ वाणीसे सम्पन्न ग्रन्थ-रचनाका सामर्थ्य प्रदान करनेवाली), ८६. ऋतम् (सूनृत-स्वरूपिणी), ८७. ऋषिः (वेदरूपा), ८८. ऋतुमती, ८९. ऋषिदेवनमस्कृता (ऋषियों तथा देवताओंसे नमस्कृत होनेवाली) ॥ २३ ॥

ऋग्वेदा ऋणहर्त्री च ऋषिमण्डलचारिणी ।
ऋद्धिदा ऋजुमार्गस्था ऋजुधर्मा ऋतुप्रदा ॥ २४ ॥
९०. ऋग्वेदा (ऋग्वेदरूपा), ९१. ऋणहर्जी (देव-ऋण, ऋषि-ऋण और पितृ ऋणका नाश करनेवाली ), १२. ऋषिमण्डलधारिणी (ऋषियोंकी मण्डलीमें विचरण करनेवाली), ९३. ऋद्धिदा (समृद्धि प्रदान करनेवाली), ९४. ऋजुमार्गस्था (सदाचारके मार्गपर चलनेवाली), ९५. ऋजुधर्मा (सहज धर्मवाली), १६. ऋतुप्रदा (अपनी कृपासे विभिन्न ऋतुएँ प्रदान करनेवाली) ॥ २४ ॥

ऋग्वेदनिलया ऋज्वी लुप्तधर्मप्रवर्तिनी ।
लूतारिवरसम्भूता लूतादिविषहारिणी ॥ २५ ॥
१७. ऋग्वेदनिलया (ऋग्वेदमें निवास करनेवाली), ९८. ऋच्ची (सरल स्वभाववाली), ९९. लुप्तधर्मप्रवर्तिनी (लुप्त धर्मोका पुनः प्रवर्तन करनेवाली), १००. लूतारिवरसम्भूता (लूता नामक रोगविशेषके महान् शत्रुरूपी मन्त्रोंको उत्पन्न करनेवाली), १०१. लूतादिविषहारिणी (मकड़ी आदिके विषका हरण करनेवाली) ॥ २५ ॥

एकाक्षरा चैकमात्रा चैका चैकैकनिष्ठिता ।
ऐन्द्री ह्यैरावतारूढा चैहिकामुष्मिकप्रदा ॥ २६ ॥
१०२. एकाक्षरा (एक अक्षरसे युक्त), १०३. एकमात्रा (एक मात्रामें विराजनेवाली), १०४. एका (अद्वितीय), १०५. एकनिष्ठा (सर्वदा एकनिष्ठ भावमें रहनेवाली), १०६. ऐन्द्री (इन्द्रकी शक्तिस्वरूपा), १०७. ऐरावतारूढा (ऐरावतपर आरूढ़ रहनेवाली), १०८. ऐहिकामुष्मिकप्रदा (इहलोक तथा परलोकका फल प्रदान करनेवाली) ॥ २६ ॥

ओङ्‌कारा ह्योषधी चोता चोतप्रोतनिवासिनी ।
और्वा ह्यौषधसम्पन्ना औपासनफलप्रदा ॥ २७ ॥
१०९. ओङ्‌कारा (प्रणवस्वरूपिणी), ११०.ओषधी (सांसारिक रोगोंसे ग्रस्त प्राणियोंके लिये ओषधिरूपा), १११. ओता (मणिमें सूत्रकी भाँति सम्पूर्ण प्राणियोंके अन्तःकरणमें विराजमान), ११२. ओतप्रोतनिवासिनी (ब्रह्मसे व्यास ब्रह्माण्डमें निवास करनेवाली), ११३. और्वा (वाडवाग्निस्वरूपिणी), ११४. औषधसम्पन्ना (भवरोगके शमनहेतु औषधियोंसे सम्पन्न), ११५. औपासनफलप्रदा (उपासना करनेवालोंको श्रेष्ठ फल प्रदान करनेवाली) ॥ २७ ॥

अण्डमध्यस्थिता देवी चाःकारमनुरूपिणी ।
कात्यायनी कालरात्रिः कामाक्षी कामसुन्दरी ॥ २८ ॥
११६. अण्डमध्यस्थिता देवी (ब्रह्माण्डके भीतर विराजमान देवी), ११७. अ:कारमनुरूपिणी (अ:कार अर्थात् विसर्गरूप मन्त्रमय विग्रहवाली), ११८. कात्यायनी (कात्यायनऋषिद्वारा उपासित), ११९. कालरात्रि (दानवोंके संहारके लिये कालरात्रिके रूपमें प्रकट करनेवाली), १२०. कामाक्षी (कामको नेत्रोंमें धारण करनेवाली), १२१, कामसुन्दरी (यथेच्छ सुन्दर स्वरूप धारण करनेवाली) ॥ २८ ॥

कमला कामिनी कान्ता कामदा कालकण्ठिनी ।
करिकुम्भस्तनभरा करवीरसुवासिनी ॥ २९ ॥
१२२. कमला, १२३. कामिनी, १२४. कान्ता, १२५. कामदा, १२६. कालकण्ठिनी (कालको अपने कण्ठमें समाहित कर लेनेवाली), १२७. करिकुम्भस्तनभरा (हाथीके कुम्भसदृश पयोधरोंवाली), १२८. करवीरसुवासिनी (करवीर अर्थात् महालक्ष्मीक्षेत्रमें निवास करनेवाली) ॥ २९ ॥

कल्याणी कुण्डलवती कुरुक्षेत्रनिवासिनी ।
कुरुविन्ददलाकारा कुण्डली कुमुदालया ॥ ३० ॥
कालजिह्वा करालास्या कालिका कालरूपिणी ।
कमनीयगुणा कान्तिः कलाधारा कुमुद्वती ॥ ३१ ॥
१२९. कल्याणी, १३०. कुण्डलवती, १३१. कुरुक्षेत्रनिवासिनी, १३२. कुरुविन्ददलाकारा (कुरुविन्ददलके समान आकारवाली), १३३. कुण्डली, १३४. कुमुदालया, १३५. कालजिह्वा (राक्षसोंके संहारके लिये कालरूपिणी जिलासे सम्पन्न), १३६. करालास्या (शत्रुओंक समक्ष विकराल मुखाकृतिवाली), १३७. कालिका, १३८. कालरूपिणी, १३९. कमनीयगुणा (सुन्दर गुणोंसे सम्पन्न), १४०. कान्तिः, १४१, कलाधारा (समस्त चौंसठ कलाओंको धारण करनेवाली), १४२. कुमुदती ॥ ३०-३१ ॥

कौशिकी कमलाकारा कामचारप्रभञ्जिनी ।
कौमारी करुणापाङ्‌गी ककुबन्ता करिप्रिया ॥ ३२ ॥
१४३. कौशिकी, १४४. कमलाकारा (कमलके समान सुन्दर आकार धारण करनेवाली), १४५. कामचारप्रभञ्जिनी (स्वेच्छाचारका ध्वंस करनेवाली), १४६. कौमारी, १४७, करुणापाङ्‌गी (करुणामय कटाक्षसे भक्तोंपर कृपा करनेवाली), १४८. ककुबन्ता (दिशाओंकी अवसानरूपा), १४९. करिप्रिया (जिन्हें हाथी प्रिय है) ॥ ३२ ॥

केसरी केशवनुता कदम्बकुसुमप्रिया ।
कालिन्दी कालिका काञ्ची कलशोद्‍भवसंस्तुता ॥ ३३ ॥
काममाता क्रतुमती कामरूपा कृपावती ।
कुमारी कुण्डनिलया किराती कीरवाहना । ३४ ॥
१५०. केसरी, १५१. केशवनुता (भगवान् श्रीकृष्णके द्वारा प्रणम्य), १५२. कदम्बकुसुमप्रिया (कदम्बके पुष्पसे प्रेम करनेवाली), १५३. कालिन्दी, १५४, कालिका, १५५. काञ्ची, १५६. कलशोद्‌भवसंस्तुता (अगस्त्यमुनिसे स्तुत होनेवाली), १५७. काममाता, १५८. क्रतुमती (यज्ञमय विग्रह धारण करनेवाली), १५१. कामरूपा, १६०. कृपावती, १६१. कुमारी, १६२. कुण्डनिलया (हवनकुण्डमें विराजनेवाली), १६३. किराती (भक्तोंका कार्यसाधन करनेके लिये किरात-वेष धारण करनेवाली), १६४, कीरवाहना (तोतापक्षीको वाहनरूपमें रखनेवाली) ॥ ३३-३४ ॥

कैकेयी कोकिलालापा केतकी कुसुमप्रिया ।
कमण्डलुधरा काली कर्मनिर्मूलकारिणी ॥ ३५ ॥
१६५. कैकेयी, १६६. कोकिलालापा, १६७. केतकी, १६८. कुसुमप्रिया, १६९. कमण्डलुधरा (ब्रह्मचारिणीके रूपमें कमण्डलु धारण करनेवाली), १७०. काली, १७१, कर्मनिर्मूलकारिणी (आराधित होनेपर कर्मोको निर्मूल कर देनेवाली) ॥ ३५ ॥

कलहंसगतिः कक्षा कृतकौतुकमङ्‌गला ।
कस्तूरीतिलका कम्रा करीन्द्रगमना कुहूः ॥ ३६ ॥
१७२. कलहंसगतिः, १७३. कक्षा, १७४, कृतकौतुकमङ्‌गला (सर्वदा मंगलमय वैवाहिक वेष धारण करनेवाली), १७५. कस्तूरीतिलका, १७६. कना (चंचला), १७७. करीन्द्रगमना (ऐरावतपर आरूढ होनेवाली), १७८. कुहूः (अमावस्या नामसे प्रसिद्ध) ॥ ३६ ॥

कर्पूरलेपना कृष्णा कपिला कुहराश्रया ।
कूटस्था कुधरा कम्रा कुक्षिस्थाखिलविष्टपा ॥ ३७ ॥
१७९. कपूरलेपना, १८०. कृष्णा , १८१. कपिला, १८२. कुहराश्रया (बुद्धिरूपी गुहामें स्थित रहनेवाली), १८३. कूटस्था (पर्वतशिखरपर निवास करनेवाली), १८४, कुधरा (पृथ्वीको धारण करनेवाली), १८५. कम्रा (अत्यन्त सुन्दरी), १८६. कुक्षिस्थाखिलविष्टपा (अपनी कुक्षिमें स्थित अखिल जगत्की रक्षा करनेवाली) ॥ ३७ ॥

खड्गखेटकरा खर्वा खेचरी खगवाहना ।
खट्वाङ्‌गधारिणी ख्याता खगराजोपरिस्थिता ॥ ३८ ॥
१८७. खड्गखेटकरा (दानवोंको मारनेके लिये हाथमें ढाल-तलवार धारण करनेवाली), १८८. खां (अभिमानिनी), १८९. खेचरी, १९०, खगवाहना, १११. खट्वाङ्‌गधारिणी, १९२. ख्याता, १९३. खगराजोपरिस्थिता (गरुडके ऊपर विराजमान रहनेवाली) ॥ ३८ ॥

खलघ्नी खण्डितजरा खण्डाख्यानप्रदायिनी ।
खण्डेन्दुतिलका गङ्‌गा गणेशगुहपूजिता ॥ ३९ ॥
१९४. खलनी, १९५. खण्डितजरा (बुढ़ापेसे रहित विग्रहवाली), १९६. खण्डाख्यानप्रदायिनी (मधुर कथाओंको प्रदान करनेवाली), १९७. खण्डेन्दुतिलका (ललाटपर खण्डित चन्द्रमा अर्थात् द्वितीयाके चन्द्रमाको तिलकरूपमें धारण करनेवाली), १९८. गङ्‌गा, १९९. गणेशगुहपूजिता (गणेश तथा कार्तिकेयसे पूजित) ॥ ३९ ॥

गायत्री गोमती गीता गान्धारी गानलोलुपा ।
गौतमी गामिनी गाथा गन्धर्वाप्सरसेविता ॥ ४० ॥
२००, गायत्री (अपना गुणगान करनेवालोंकी संरक्षिका), २०१. गोमती, २०२. गीता, २०३. गान्धारी, २०४, गानलोलुपा, २०५. गौतमी, २०६. गामिनी, २०७. गाधा (पृथ्वीको आश्रय देनेवाली), २०८. गन्धर्वाप्सरसेविता (गन्धर्व तथा अप्सराओंसे सेवित) ॥ ४० ॥

गोविन्दचरणाक्रान्ता गुणत्रयविभाविता ।
गन्धर्वी गह्वरी गोत्रा गिरीशा गहना गमी ॥ ४१ ॥
२०९. गोविन्दचरणाक्रान्ता (श्रीविष्णुके चरणोंसे आक्रान्त अर्थात् पृथ्वीस्वरूपिणी), २१०. गुणत्रयविभाविता (तीन गुणोंके साथ आविर्भूत होनेवाली), २११. गन्धर्वी, २१२. गह्वरी (दुरूह महिमावाली), २१३. गोत्रा (पृथ्वीरूपा), २१४. गिरीशा (पर्वतकी अधिष्ठात्री), २१५. गहना (गूढ स्वभाववाली), २१६. गमी (गमनशीला) ॥ ४१ ॥

गुहावासा गुणवती गुरुपापप्रणाशिनी ।
गुर्वी गुणवती गुह्या गोप्तव्या गुणदायिनी ॥ ४२ ॥
२१७. गुहावासा, २१८. गुणवती, २१९. गुरुपापप्रणाशिनी (महान् पापोंका नाश करनेवाली), २२०, गुर्वी, २२१. गुणवती, २२२. गुह्या, २२३. गोप्तव्या (हृदयमें छिपाये रखनेयोग्य), २२४. गुणदायिनी ॥ ४२ ॥

गिरिजा गुह्यमातङ्‌गी गरुडध्वजवल्लभा ।
गर्वापहारिणी गोदा गोकुलस्था गदाधरा ॥ ४३ ॥
२२५. गिरिजा, २२६. गुह्यमातङ्‌गी (ब्रह्मविद्यास्वरूपिणी), २२७. गरुडध्वजवल्लभा (विष्णुकी परम प्रिया), २२८. गर्वापहारिणी (अभिमानका नाश करनेवाली), २२९. गोदा (गौ अथवा पृथ्वीका दान करनेवाली), २३०. गोकुलस्था, २३१. गदाधरा ॥ ४३ ॥

गोकर्णनिलयासक्ता गुह्यमण्डलवर्तिनी ।
घर्मदा घनदा घण्टा घोरदानवमर्दिनी ॥ ४४ ॥
२३२. गोकर्णनिलयासक्ता (गोकर्ण नामक तीर्थस्थानमें निवासहेतु तत्पर रहनेवाली), २३३. गुह्यमण्डलवर्तिनी (अत्यन्त गोपनीय मण्डलमें विद्यमान रहनेवाली), २३४. घर्मदा (ऊष्मा प्रदान करनेवाली), २३५. घनदा (मेघ उत्पन्न करनेवाली), २३६. घण्टा, २३७. घोरदानवमर्दिनी ॥ ४४ ॥

घृणिमन्त्रमयी घोषा घनसम्पातदायिनी ।
घण्टारवप्रिया घ्राणा घृणिसन्तुष्टकारिणी ॥ ४५ ॥
२३८. घृणिमन्त्रमयी (सूर्यको प्रसन्न करनेवाले मन्त्ररूपसे विराजमान), २३९. घोषा (युद्धमें भयावह नाद करनेवाली), २४०. घनसम्यातदायिनी (मेघोंको जलवृष्टिकी आज्ञा देनेवाली), २४१, घण्टारवप्रिया (घण्टाध्वनिसे प्रसन्न होनेवाली), २४२. प्राणा (घ्राणेन्द्रियकी अधिष्ठात्री देवी), २४३. घृणिसन्तुष्टकारिणी (सूर्यको सन्तुष्ट करनेवाली) ॥ ४५ ॥

घनारिमण्डला घूर्णा घृताची घनवेगिनी ।
ज्ञानधातुमयी चर्चा चर्चिता चारुहासिनी ॥ ४६ ॥
२४४. घनारिमण्डला (अनेकानेक शत्रुओंसे परिवृता), २४५. घूर्णा (सर्वत्र भ्रमणशीला), २४६. घृताची (सरस्वतीरूपा अथवा रात्रिकी अधिष्ठात्री देवी), २४७. घनवेगिनी (प्रचण्ड वेगशाली), २४८. ज्ञानधातुमयी (चिन्मय धातुओंसे बनी हुई), २४९. चर्चा, २५०. चर्चिता (चन्दन आदि सुगन्धित द्रव्योंसे सुपूजित), २५१. चारुहासिनी ॥ ४६ ॥

चटुला चण्डिका चित्रा चित्रमाल्यविभूषिता ।
चतुर्भुजा चारुदन्ता चातुरी चरितप्रदा ॥ ४७ ॥
२५२. चटुला, २५३. चण्डिका, २५४. चित्रा, २५५. चित्रमाल्यविभूषिता (अनेक प्रकारके रंगोंकी मालाओंसे सुशोभित), २५६. चतुर्भुजा, २५७. चारुदन्ता, २५८. चातुरी, २५१. चरितप्रदा (सदाचारकी शिक्षा प्रदान करनेवाली) ॥ ४७ ॥

चूलिका चित्रवस्त्रान्ता चन्द्रमःकर्णकुण्डला ।
चन्द्रहासा चारुदात्री चकोरी चन्द्रहासिनी ॥ ४८ ॥
२६०. चूलिका (देवी-देवताओंमें शीर्ष स्थानवाली), २६१. चित्रवस्वान्ता, २६२. चन्द्रम:कर्णकुण्डला (कानोंमें चन्द्राकार कुण्डल धारण करनेवाली), २६३. चन्द्रहासा, २६४. चारुदात्री, २६५. चकोरी, २६६. चन्द्रहासिनी (चन्द्रमाको अपने मुखसौन्दर्यसे आह्लादित करनेवाली) ॥ ४८ ॥

चन्द्रिका चन्द्रधात्री च चौरी चौरा च चण्डिका ।
चञ्चद्वाग्वादिनी चन्द्रचूडा चोरविनाशिनी ॥ ४९ ॥
२६७. चन्द्रिका, २६८. चन्द्रधात्री, २६९. चौरी (अपनी शक्तिको गुप्त रखनेवाली), २७०. चौरा (भक्तोंका पाप हरण करनेवाली), २७१. चण्डिका, २७२. चञ्चद्वाग्वादिनी (चंचलतापूर्वक सम्भाषण करनेवाली), २७३. चन्द्रचूडा, २७४. चोरविनाशिनी (चौरवृत्तिमें लिप्त लोगोंका विनाश करनेवाली) ॥ ४९ ॥

चारुचन्दनलिप्ताङ्‌गी चञ्चच्चामरवीजिता ।
चारुमध्या चारुगतिश्चन्दिला चन्द्ररूपिणी ॥ ५० ॥
२७५. चारुचन्दनलिप्ताङ्‌गी (सुन्दर चन्दनसे अनुलिप्त अंगोंवाली), २७६. चञ्चच्चामरवीजिता (निरन्तर डुलाये जाते हुए चँवरोंसे सुसेवित), २७७. चारुमध्या (सुन्दर कटिप्रदेशवाली), २७८. चारुगतिः (मनमोहक गतिवाली), २७९. चन्दिला, २८०. चन्द्ररूपिणी ॥ ५० ॥

चारुहोमप्रिया चार्वाचरिता चक्रबाहुका ।
चन्द्रमण्डलमध्यस्था चन्द्रमण्डलदर्पणा ॥ ५१ ॥
२८१. चारुहोमप्रिया (श्रेष्ठ हवनसे प्रसन्न होनेवाली), २८२. चार्वाचरिता (उत्तम आचरणसे सम्पन्न), २८३. चक्रबाहुका, २८४, चन्द्रमण्डलमध्यस्था, २८५. चन्द्रमण्डलदर्पणा (चन्द्रमण्डलरूपी दर्पणको धारण करनेवाली) ॥ ५१ ॥

चक्रवाकस्तनी चेष्टा चित्रा चारुविलासिनी ।
चित्स्वरूपा चन्द्रवती चन्द्रमाश्चन्दनप्रिया ॥ ५२ ॥
२८६. चक्रवाकस्तनी (चक्रवाकके समान स्तनोंवाली), २८७. चेष्टा, २८८. चित्रा, २८९. चारुविलासिनी, २९०. चित्स्वरूपा (चिन्मय स्वरूपवाली), २९१, चन्द्रवती, २९२. चन्द्रमा, २९३. चन्दनप्रिया ॥ ५२ ॥

चोदयित्री चिरप्रज्ञा चातका चारुहेतुकी ।
छत्रयाता छत्रधरा छाया छन्दःपरिच्छदा ॥ ५३ ॥
२९४, चोदयित्री (भक्तोंको प्रेरणा प्रदान करनेवाली), २९५. चिरप्रज्ञा (सनातन विद्यास्वरूपिणी), २९६. चातका (चातकके समान दृढ संकल्पवाली), २९७. चारुहेतुकी, २९८. छत्रयाता (छत्रयुक्त होकर गमन करनेवाली), २९९. छत्रधरा, ३००, छाया, ३०१. छन्दःपरिच्छदा (वेदोंसे ज्ञात होनेवाली) ॥ ५३ ॥

छायादेवीच्छिद्रनखा छन्नेन्द्रियविसर्पिणी ।
छन्दोऽनुष्टुप्प्रतिष्ठान्ता छिद्रोपद्रवभेदिनी ॥ ५४ ॥
३०२. छायादेवी, ३०३. छिद्रनखा, ३०४. छन्नेन्द्रियविसर्पिणी (जितेन्द्रिय योगियोंके पास पधारनेवाली), ३०५. छन्दोऽनुष्टुप्प्रतिष्ठान्ता (अनुष्टुप् छन्दमें प्रतिष्ठित रहनेवाली), ३०६. छिद्रोपद्रवभेदिनी (कपटरूप उपद्रवको शान्त करनेवाली) ॥ ५४ ॥

छेदा छत्रेश्वरी छिन्ना छुरिका छेदनप्रिया ।
जननी जन्मरहिता जातवेदा जगन्मयी ॥ ५५ ॥
३०७. छेदा (पापोंका उच्छेदन करनेवाली), ३०८. छत्रेश्वरी, ३०९. छिन्ना, ३१०. छुरिका, ३११. छेदनप्रिया, ३१२. जननी, ३१३. जन्मरहिता, ३१४, जातवेदा (अग्निस्वरूपिणी), ३१५. जगन्मयी ॥ ५५ ॥

जाह्नवी जटिला जेत्री जरामरणवर्जिता ।
जम्बूद्वीपवती ज्वाला जयन्ती जलशालिनी ॥ ५६ ॥
जितेन्द्रिया जितक्रोधा जितामित्रा जगत्प्रिया ।
जातरूपमयी जिह्वा जानकी जगती जरा ॥ ५७ ॥
३१६. जाह्नवी, ३१७. जटिला, ३१८.जेत्री, ३१९. जरामरणवर्जिता, ३२०. जम्बूद्वीपवती, ३२१. ज्वाला, ३२२. जयन्ती, ३२३. जलशालिनी, ३२४. जितेन्द्रिया, ३२५. जितक्रोधा, ३२६. जितामित्रा, ३२७. जगत्प्रिया, ३२८. जातरूपमयी (परम सुन्दर रूपवाली), ३२९. जिह्वा, ३३०. जानकी, ३३१. जगती, ३३२. जरा (सन्ध्याकालमें वृद्धरूप धारण करनेवाली) ॥ ५६-५७ ॥

जनित्री जह्नुतनया जगत्त्रयहितैषिणी ।
ज्वालामुखी जपवती ज्वरघ्नी जितविष्टपा ॥ ५८ ॥
३३३. जनित्री, ३३४. जह्वतनया, ३३५. जगत्त्रयहितैषिणी (तीनों लोकोंका हित चाहनेवाली), ३३६, चालामुखी, ३३७. जपवती (सदा ब्रह्मके जपमें तत्पर रहनेवाली), ३३८. ज्वरनी, ३३९. जितविष्टपा (सम्पूर्ण जगत्पर विजय प्राप्त करनेवाली) ॥ ५८ ॥

जिताक्रान्तमयी ज्वाला जाग्रती ज्वरदेवता ।
ज्वलन्ती जलदा ज्येष्ठा ज्याघोषास्फोटदिङ्‌मुखी ॥ ५९ ॥
३४०. जिताक्रान्तमयी (सबको आक्रान्त करनेके लिये विजयशालिनी देवी), ३४१. चाला, ३४२. जाग्रती, ३४३. ज्वरदेवता, ३४४. चलन्ती, ३४५. जलदा, ३४६. ज्येष्ठा, ३४७.ज्याघोषास्फोटदिइमुखी (दिशाओंविदिशाओंको अपने धनुषकी स्पष्ट तथा भीषण टंकारसे व्याप्त कर देनेवाली) ॥ ५९ ॥

जम्भिनी जृम्भणा जृम्भा ज्वलन्माणिक्यकुण्डला ।
झिंझिका झणनिर्घोषा झंझामारुतवेगिनी ॥ ६० ॥
३४८. जम्भिनी (अपने दाँतोंसे दानवोंको पीस डालनेवाली), ३४९. जम्भणा, ३५०, जम्भा, ३५१. ज्वलन्माणिक्यकुण्डला (प्रभायुक्त मणियोंके कुण्डलोंसे सुशोभित), ३५२. झिंझिका (झींगुरसदृश तुच्छ प्राणीको भी अपने अंशसे उत्पन्न करनेवाली), ३५३. झणनिर्घोषा (कंकणकी झंकार ध्वनिसे सर्वदा मुखरित), ३५४. झंझामारुतवेगिनी (झंझावातके सदृश भयावह वेगशाली) ॥ ६० ॥

झल्लरीवाद्यकुशला ञरूपा ञभुजा स्मृता ।
टङ्‌कबाणसमायुक्ता टङ्‌किनी टङ्‌कभेदिनी ॥ ६१ ॥
३५५. झल्लरीवाद्यकुशला (झाँझ नामक वाद्य बजानेमें अत्यन्त निपुण), ३५६. अरूपा (बलीवर्दके समान रूपवाली), ३५७. अभुजा (बलीवर्दके समान पराक्रमी भुजाओंवाली), ३५८. टङ्‌कबाणसमायुक्ता, ३५९. टङ्‌किनी, ३६०. टङ्‌कभेदिनी ॥ ६१ ॥

टङ्‌कीगणकृताघोषा टङ्कनीयमहोरसा ।
टङ्‌कारकारिणी देवी ठठशब्दनिनादिनी ॥ ६२ ॥
३६१. टङ्‌कीगणकृताघोषा (रुद्रगणके समान गम्भीर ध्वनि करनेवाली), ३६२. टङ्‌कनीयमहोरसा (वर्णनीय महान् वक्षःस्थलवाली), ३६३. टङ्‌कारकारिणीदेवी, ३६४. ठठशब्दनिनादिनी (ठ ठ शब्दके घोर निनादसे शत्रुओंको भयाक्रान्त करनेवाली) ॥ ६२ ॥

डामरी डाकिनी डिम्भा डुण्डुमारैकनिर्जिता ।
डामरीतन्त्रमार्गस्था डमड्डमरुनादिनी ॥ ६३ ॥
३६५. डामरी, ३६६. डाकिनी, ३६७, डिम्भा, ३६८. इण्डुमारकनिर्जिता (इण्डमार नामक राक्षसको परास्त करनेवाली), ३६९. डामरीतन्त्रमार्गस्था (डामरतन्त्रके मार्गपर स्थित), ३७०. डमड्डमरुनादिनी (डमरुसे डमड्ड मड् ध्वनि उत्पन्न करनेवाली) ॥ ६३ ॥

डिण्डीरवसहा डिम्भलसत्कीडापरायणा ।
ढुण्ढिविघ्नेशजननी ढक्काहस्ता ढिलिव्रजा ॥ ६४ ॥
३७१. डिण्डीरवसहा (डिण्डी नामक वाद्यकी ध्वनिको सहन करनेवाली), ३७२. डिम्भलसत्क्रीडापरायणा (छोटे बच्चोंके साथ प्रेमपूर्वक क्रीडा करने में संलग्न), ३७३. ढुण्ढिविघ्नेशजननी, ३७४. उक्काहस्ता, ३७५. ढिलिवजा (लिलि नामक गणसमूहोंसे समन्वित) ॥ ६४ ॥

नित्यज्ञाना निरुपमा निर्गुणा नर्मदा नदी ।
त्रिगुणा त्रिपदा तन्त्री तुलसीतरुणातरुः ॥ ६५ ॥
३७६. नित्यज्ञाना, ३७७. निरुपमा, ३७८. निर्गुणा, ३७९. नर्मदा, ३८०. नदी, ३८१, त्रिगुणा, ३८२. त्रिपदा, ३८३. तन्त्री, ३८४, तुलसीतरुणातरुः (वृक्षोंमें तरुणी तुलसीरूपसे विराजमान) ॥ ६५ ॥

त्रिविक्रमपदाक्रान्ता तुरीयपदगामिनी ।
तरुणादित्यसङ्‌काशा तामसी तुहिना तुरा ॥ ६६ ॥
३८५. त्रिविक्रमपदाक्रान्ता (भगवान् वामनके तीन डगोंसे आक्रान्त पृथ्वीरूपा), ३८६. तुरीयपदगामिनी (चतुर्थ पादमें गमन करनेवाली), ३८७. तरुणादित्यसङ्‌काशा (प्रचण्ड सूर्यके समान तेजवाली), ३८८. तामसी, ३८९. तुहिना (चन्द्रमासदृश शीतल किरणोंवाली), ३९०. तुरा (शीघ्र गमन करनेवाली) ॥ ६६ ॥

त्रिकालज्ञानसम्पन्ना त्रिवेणी च त्रिलोचना ।
त्रिशक्तिस्त्रिपुरा तुङ्‌गा तुरङ्‌गवदना तथा ॥ ६७ ॥
३९१. त्रिकालज्ञानसम्पन्ना, ३९२. त्रिवेणी (गंगा-यमुना-सरस्वतीरूपा), ३९३. त्रिलोचना, ३९४. त्रिशक्तिः (इच्छाशक्ति-क्रियाशक्ति-ज्ञानशक्तिरूपा), ३९५. त्रिपुरा, ३९६. तुङ्‌गा, ३९७. तुरङ्‌गवदना ॥ ६७ ॥

तिमिङ्‌गिलगिला तीव्रा त्रिस्रोता तामसादिनी ।
तन्त्रमन्त्रविशेषज्ञा तनुमध्या त्रिविष्टपा ॥ ६८ ॥
३९८. तिमिलिगिला (मत्स्यभोजी तिमिंगिलको भी खा जानेवाली), ३९९. तीव्रा, ४००. त्रिस्रोता, ४०१. तामसादिनी (अज्ञानरूपी अन्धकारका भक्षण करनेवाली), ४०२. तन्त्रमन्त्रविशेषज्ञा, ४०३, तनुमध्या, ४०४. त्रिविष्टपा ॥ ६८ ॥

त्रिसन्ध्या त्रिस्तनी तोषासंस्था तालप्रतापिनी ।
ताटङ्‌किनी तुषाराभा तुहिनाचलवासिनी ॥ ६९ ॥
४०५. त्रिसन्ध्या, ४०६. त्रिस्तनी (राजा मलयध्वजके यहाँ कन्याके रूपमें विराजमान), ४०७. तोषासंस्था (सदा सन्तुष्ट भावमें स्थित), ४०८. तालप्रतापिनी (ताली बजाकर शत्रुओंको आतंकित करनेवाली), ४०९. ताटकिनी, ४१०. तुषाराभा (बर्फके समान धवल कान्तिवाली), ४११. तुहिनाचलवासिनी (हिमालयमें निवास करनेवाली) ॥ ६९ ॥

तन्तुजालसमायुक्ता तारहारावलिप्रिया ।
तिलहोमप्रिया तीर्था तमालकुसुमाकृतिः ॥ ७० ॥
४१२. तन्तुजालसमायुक्ता, ४१३. तारहारावलिप्रिया (चमकीले तारोंसे युक्त हार-पंक्तियोंसे प्रेम करनेवाली), ४१४. तिलहोमप्रिया, ४१५. तीर्था, ४१६, तमालकुसुमाकृतिः (तमालपुष्पके समान श्याम आकृतिवाली) ॥ ७० ॥

तारका त्रियुता तन्वी त्रिशङ्‌कुपरिवारिता ।
तलोदरी तिलाभूषा ताटङ्‌कप्रियवाहिनी ॥ ७१ ॥
४१७. तारका (भक्तोंको तारनेवाली), ४१८. त्रियुता, ४१९. तन्वी, ४२०. त्रिशकुपरिवारिता (राजा त्रिशंकुके द्वारा उपास्यरूपमें वरण की हुई), ४२१. तलोदरी (पृथ्वीको उदरके रूपमें धारण करनेवाली), ४२२. तिलाभूषा (तिलके पुष्पके सदृश नीलकान्तिवाली), ४२३. ताटङ्‌कप्रियवाहिनी (कानोंमें सुन्दर कर्णफूल धारण करनेवाली) ॥ ७१ ॥

त्रिजटा तित्तिरी तृष्णा त्रिविधा तरुणाकृतिः ।
तप्तकाञ्चनसंकाशा तप्तकाञ्चनभूषणा ॥ ७२ ॥
४२४. त्रिजटा, ४२५. तित्तिरी, ४२६. तृष्णा, ४२७. त्रिविधा, ४२८. तरुणाकृतिः, ४२९. तप्तकाञ्चनसङ्‌काशा (तप्त सोनेके सदृश प्रभावाली), ४३०. तप्तकाञ्चनभूषणा (तप्त सोनेके सदृश दीप्तिवाले आभूषणोंसे अलंकृत) ॥ ७२ ॥

त्रैयम्बका त्रिवर्गा च त्रिकालज्ञानदायिनी ।
तर्पणा तृप्तिदा तृप्ता तामसी तुम्बुरुस्तुता ॥ ७३ ॥
तार्क्ष्यस्था त्रिगुणाकारा त्रिभङ्‌गी तनुवल्लरिः ।
थात्कारी थारवा थान्ता दोहिनी दीनवत्सला ॥ ७४ ॥
४३१. त्रयम्बका, ४३२. त्रिवर्गा, ४३३. त्रिकालज्ञानदायिनी, ४३४. तर्पणा, ४३५. तृप्तिदा, ४३६. तृप्ता, ४३७. तामसी, ४३८. तुम्बुरुस्तुता, ४३९. तार्क्ष्यस्था (गरुडपर विराजमान रहनेवाली), ४४०. त्रिगुणाकारा, ४४१. त्रिभङ्‌गी, ४४२. तनुवल्लरिः (कोमल लताकी भाँति कमनीय अंगोंवाली), ४४३. थात्कारी (युद्धभूमिमें 'थात्' शब्दका उच्चारण करनेवाली), ४४४. थारवा (भयसे मुक्त करनेवाले शब्दका उच्चारण करनेवाली), ४४५. थान्ता (मंगलमयी देवी), ४४६. दोहिनी (यथेच्छ दोहन करनेयोग्य कामधेनुस्वरूपिणी), ४४७. दीनवत्सला ॥ ७३-७४ ॥

दानवान्तकरी दुर्गा दुर्गासुरनिबर्हिणी ।
देवरीतिर्दिवारात्रिर्द्रौपदी दुन्दुभिस्वना ॥ ७५ ॥
४४८. दानवान्तकरी, ४४९. दुर्गा, ४५०. दुर्गासुरनिबर्हिणी (दुर्ग नामक राक्षसका वध करनेवाली), ४५१. देवरीतिः (दिव्य मार्गसे सम्पन्न), ४५२. दिवारात्रिः, ४५३. द्रौपदी, ४५४. दुन्दुभिस्वना (दुन्दुभिके समान तीव्र ध्वनि करनेवाली) ॥ ७५ ॥

देवयानी दुरावासा दारिद्र्योद्‍भेदिनी दिवा ।
दामोदरप्रिया दीप्ता दिग्वासा दिग्विमोहिनी ॥ ७६ ॥
४५५. देवयानी, ४५६. दुरावासा, ४५७. दारिद्रयोद्धेदिनी (दरिद्रता दूर करनेवाली), ४५८. दिवा, ४५९. दामोदरप्रिया, ४६०. दीप्ता, ४६१. दिग्वासा (दिशारूपी वस्ववाली), ४६२. दिग्विमोहिनी (समस्त दिशाओंको मोहित करनेवाली) ॥ ७६ ॥

दण्डकारण्यनिलया दण्डिनी देवपूजिता ।
देववन्द्या दिविषदा द्वेषिणी दानवाकृतिः ॥ ७७ ॥
४६३, दण्डकारण्यनिलया, ४६४. दण्डिनी, ४६५. देवपूजिता, ४६६. देववन्द्या, ४६७, दिविषदा (सदा स्वर्गमें विराजमान रहनेवाली), ४६८. द्वेषिणी (राक्षसोंसे द्वेष करनेवाली), ४६९. दानवाकृतिः (समयानुसार दानवसदृश आकृति धारण करनेवाली) ॥ ७७ ॥

दीनानाथस्तुता दीक्षा दैवतादिस्वरूपिणी ।
धात्री धनुर्धरा धेनुर्धारिणी धर्मचारिणी ॥ ७८ ॥
धरंधरा धराधारा धनदा धान्यदोहिनी ।
धर्मशीला धनाध्यक्षा धनुर्वेदविशारदा ॥ ७९ ॥
४७०. दीनानाथस्तुता, ४७१. दीक्षा, ४७२. दैवतादिस्वरूपिणी, ४७३. धात्री, ४७४. धनुर्धरा, ४७५, धेनुः, ४७६. धारिणी, ४७७. धर्मचारिणी, ४७८. धरंधरा, ४७९. धराधारा, ४८०, धनदा, ४८१. धान्यदोहिनी, ४८२. धर्मशीला, ४८३. धनाध्यक्षा, ४८४. धनुर्वेदविशारदा ॥ ७८-७९ ॥

धृतिर्धन्या धृतपदा धर्मराजप्रिया ध्रुवा ।
धूमावती धूमकेशी धर्मशास्वप्रकाशिनी ॥ ८० ॥
नन्दा नन्दप्रिया निद्रा नृनुता नन्दनात्मिका ।
नर्मदा नलिनी नीला नीलकण्ठसमाश्रया ॥ ८१ ॥
४८५. धृतिः, ४८६. धन्या, ४८७. धृतपदा, ४८८. धर्मराजप्रिया, ४८९. ध्रुवा, ४९०. धूमावती, ४९१. धूमकेशी, ४९२. धर्मशास्वप्रकाशिनी, ४१३. नन्दा, ४९४. नन्दप्रिया, ४९५. निद्रा, ४९६. ननुता (मनुष्योंद्वारा नमस्कृत), ४९७. नन्दनात्मिका, ४९८. नर्मदा, ४९९. नलिनी, ५००. नीला, ५०१. नीलकण्ठसमाश्रया (नीलकण्ठ महादेवकी आश्रयरूपा) ॥ ८०-८१ ॥

नारायणप्रिया नित्या निर्मला निर्गुणा निधिः ।
निराधारा निरुपमा नित्यशुद्धा निरञ्जना ॥ ८२ ॥
नादबिन्दुकलातीता नादबिन्दुकलात्मिका ।
नृसिंहिनी नगधरा नृपनागविभूषिता ॥ ८३ ॥
५०२. नारायणप्रिया, ५०३. नित्या, ५०४. निर्मला, ५०५. निर्गुणा, ५०६. निधिः, ५०७. निराधारा, ५०८. निरुपमा, ५०९. नित्यशुद्धा, ५१०. निरञ्जना (मायासे रहित),५११. नादबिन्दुकलातीता (नाद-बिन्दु-कलासे परे), ५१२. नादबिन्दुकलात्मिका (नादबिन्दुकलारूपिणी), ५१३. नृसिंहरूपा, ५१४. नगधरा, ५१५. नृपनागविभूषिता (नागराजसे विभूषित) ॥ ८२-८३ ॥

नरकक्लेशशमनी नारायणपदोद्‍भवा ।
निरवद्या निराकारा नारदप्रियकारिणी ॥ ८४ ॥
नानाज्योतिःसमाख्याता निधिदा निर्मलात्मिका ।
नवसूत्रधरा नीतिर्निरुपद्रवकारिणी ॥ ८५ ॥
५१६. नरकक्लेशशमनी, ५१७. नारायणपदोद्‌भवा (भगवान् विष्णुके चरणसे प्रकट गंगास्वरूपिणी), ५१८. निरवद्या (दोषरहित), ५१९. निराकारा, ५२०. नारदप्रियकारिणी, ५२१. नानाज्योति:समाख्याता (अनेकविध ज्योतिरूपसे विख्यात), ५२२. निधिदा, ५२३, निर्मलात्मिका (विशुद्धस्वरूपा), ५२४. नवसूत्रधरा (नवीन सूत्र धारण करनेवाली), ५२५. नीतिः, ५२६. निरुपद्रवकारिणी (समस्त उपद्रवोंको समाप्त कर देनेवाली) ॥ ८४-८५ ॥

नन्दजा नवरत्‍नाढ्या नैमिषारण्यवासिनी ।
नवनीतप्रिया नारी नीलजीमूतनिःस्वना ॥ ८६ ॥
निमेषिणी नदीरूपा नीलग्रीवा निशीश्वरी ।
नामावलिर्निशुम्भघ्नी नागलोकनिवासिनी ॥ ८७ ॥
५२७. नन्दजा (नन्दकी पुत्री), ५२८. नवरत्नाढ्या (नौ प्रकारके रत्नोंसे विभूषित), ५२९. नैमिषारण्यवासिनी (नैमिषारण्यमें लिंगधारिणी ललितादेवीके रूपमें विराजमान), ५३०. नवनीतप्रिया, ५३१. नारी, ५३२. नीलजीमूतनिःस्वना (नीले मेषके समान गर्जन करनेवाली), ५३३. निमेषिणी (निमेषरूपा), ५३४. नदीरूपा, ५३५. नीलग्रीवा, ५३६. निशीश्वरी (रात्रिकी अधिष्ठात्री देवी), ५३७. नामावलिः (नानाविध नामोंवाली), ५३८. निशुम्भजी (निशुम्भ दैत्यका संहार करनेवाली), ५३९. नागलोकनिवासिनी ॥ ८६-८७ ॥

नवजाम्बूनदप्रख्या नागलोकाधिदेवता ।
नूपुराकान्तचरणा नरचित्तप्रमोदिनी ॥ ८८ ॥
निमग्नारक्तनयना निर्घातसमनिःस्वना ।
नन्दनोद्याननिलया निर्व्युहोपरिचारिणी ॥ ८९ ॥
५४०. नवजाम्बूनदप्रख्या (नवीन सुवर्णसदृश कान्तिसे सम्पन्न), ५४१. नागलोकाधिदेवता (पाताललोककी अधिष्ठात्री देवी), ५४२. नूपुराकान्तचरणा (नपुरोंकी झंकारसे समन्वित चरणोंवाली), ५४३. नरचित्तप्रमोदिनी, ५४४. निमग्नारक्तनयना (धेसी हुई लाल आँखोंवाली), ५४५. निर्घातसमनिःस्वना (वज्रपातके समान भीषण शब्द करनेवाली), ५४६. नन्दनोद्याननिलया (नन्दनवनमें विहार करनेवाली), ५४७. निव्यूहोपरिचारिणी (बिना व्यूहरचनाके आकाशमें स्वच्छन्द विचरण करनेवाली) ॥ ८८-८९ ॥

पार्वती परमोदारा परब्रह्मात्मिका परा ।
पञ्चकोशविनिर्मुक्ता पञ्चपातकनाशिनी ॥ ९० ॥
परचित्तविधानज्ञा पञ्चिका पञ्चरूपिणी ।
पूर्णिमा परमा प्रीतिः परतेजः प्रकाशिनी ॥ ९१ ॥
५४८. पार्वती, ५४९. परमोदारा, ५५०. परब्रह्मात्मिका, ५५१. परा, ५५२. पञ्चकोशविनिर्मुक्ता (अन्नमय, प्राणमय, मनोमय, विज्ञानमय और आनन्दमय-इन पाँच कोशोंसे रहित विग्रहवाली), ५५३. पञ्चपातकनाशिनी (पाँच प्रकारके महापातकोंका नाश करनेवाली), ५५४. परचित्तविधानज्ञा (दूसरोंके मनोभावोंको समझनेवाली), ५५५. पञ्चिका (पंचिकादेवीके नामसे प्रसिद्ध), ५५६. पञ्चरूपिणी, ५५७. पूर्णिमा, ५५८. परमा, ५५९. प्रीतिः, ५६०, परतेजः (परम तेजस्विनी), ५६१, प्रकाशिनी ॥ ९०-९१ ॥

पुराणी पौरुषी पुण्या पुण्डरीकनिभेक्षणा ।
पातालतलनिर्मग्ना प्रीता प्रीतिविवर्धिनी ॥ ९२ ॥
पावनी पादसहिता पेशला पवनाशिनी ।
प्रजापतिः परिश्रान्ता पर्वतस्तनमण्डला ॥ ९३ ॥
५६२, पुराणी, ५६३. पौरुषी, ५६४. पुण्या, ५६५. पुण्डरीकनिभेक्षणा (विकसित कमलके सदृश नेत्रोंवाली), ५६६. पातालतलनिर्मग्ना (पातालके तलतक प्रविष्ट होनेकी सामर्थ्यसे सम्पन्न), ५६७. प्रीता, ५६८. प्रीतिविवर्धनी, ५६९. पावनी, ५७०. पादसहिता (तीन पदोंसे शोभा पानेवाली), ५७१. पेशला (परम सुन्दर विग्रहवाली), ५७२. पवनाशिनी (वायुका भक्षण करनेवाली), ५७३. प्रजापतिः, ५७४. परिश्रान्ता (प्रयत्नशीला), ५७५. पर्वतस्तनमण्डला (विशाल स्तनोंसे सुशोभित) ॥ ९२-९३ ॥

पद्मप्रिया पद्मसंस्था पद्माक्षी पद्मसम्भवा ।
पद्मपत्रा पद्मपदा पद्मिनी प्रियभाषिणी ॥ ९४ ॥
५७६. पद्मप्रिया (कमलपुष्प अर्पित करनेसे प्रसन्न होनेवाली), ५७७. पद्मसंस्था (कमलके आसनपर स्थित रहनेवाली), ५७८. पद्माक्षी, ५७१. पद्मसम्भवा, ५८०. पद्मपत्रा (कमलपत्रकी भाँति जगत्से निर्लिप्त रहनेवाली), ५८१. पद्मपदा (कमलके समान कोमल चरणोंवाली), ५८२. पद्मिनी (हाथमें कमल धारण करनेवाली), ५८३. प्रियभाषिणी ॥ ९४ ॥

पशुपाशविनिर्मुक्ता पुरन्ध्री पुरवासिनी ।
पुष्कला पुरुषा पर्वा पारिजातसुमप्रिया ॥ ९५ ॥
पतिव्रता पवित्राङ्‌गी पुष्पहासपरायणा ।
प्रज्ञावतीसुता पौत्री पुत्रपूज्या पयस्विनी ॥ ९६ ॥
५८४. पशुपाशविनिर्मुक्ता (पाशविक बन्धनोंसे मुक्त), ५८५. पुरन्ध्री (गृहस्थीके कार्यमें संलग्न स्त्रीके रूपमें विराजमान), ५८६. पुरवासिनी, ५८७. पुष्कला, ५८८. पुरुषा (पुरुषार्थमयी), ५८९. पर्वा (पर्वस्वरूपा), ५९०. पारिजातसुमप्रिया (पारिजात पुष्पसे अत्यधिक प्रेम रखनेवाली), ५९१. पतिव्रता, ५९२. पवित्राङ्‌गी, ५९३. पुष्पहासपरायणा (खिले हुए पुष्पके समान हँसनेवाली), ५९४. प्रज्ञावतीसुता, ५९५. पौत्री, ५९६. पुत्रपूज्या, ५९७. पयस्विनी (प्राणियोंके संवर्धनहेतु अमृततुल्य दुग्ध प्रदान करनेवाली) ॥ ९५-९६ ॥

पट्टिपाशधरा पङ्‌क्तिः पितृलोकप्रदायिनी ।
पुराणी पुण्यशीला च प्रणतार्तिविनाशिनी ॥ ९७ ॥
प्रद्युम्नजननी पुष्टा पितामहपरिग्रहा ।
पुण्डरीकपुरावासा पुण्डरीकसमानना ॥ ९८ ॥
५९८. पट्टिपाशधरा, ५९९. पंक्तिः , ६००. पितृलोकप्रदायिनी, ६०१. पुराणी, ६०२. पुण्यशीला, ६०३. प्रणतातिविनाशिनी (शरणागतजनोंका क्लेश दूर करनेवाली), ६०४. प्रद्युम्नजननी, ६०५. पुष्टा (पुष्टिरूपा), ६०६. पितामहपरिग्रहा (आदिशक्तिद्वारा पितामह ब्रह्माके लिये अर्पित की गयी देवी), ६०७. पुण्डरीकपुरावासा (पुण्डरीकपुर अर्थात् चिदम्बरक्षेत्रमें निवास करनेवाली), ६०८. पुण्डरीकसमानना (कमलसदृश सुन्दर मुखवाली) ॥ ९७-९८ ॥

पृथुजङ्‌घा पृथुभुजा पृथुपादा पृथूदरी ।
प्रवालशोभा पिङ्‌गाक्षी पीतवासाः प्रचापला ॥ ९९ ॥
प्रसवा पुष्टिदा पुण्या प्रतिष्ठा प्रणवागतिः ।
पञ्चवर्णा पञ्चवाणी पञ्चिका पञ्जरस्थिता ॥ १०० ॥
६०९. पृथुजङ्‌गा (विशाल जाँघोंवाली), ६१०. पृथुभुजा (दीर्घ भुजाओंवाली), ६११. पृथुपादा (बृहत् चरणोंवाली), ६१२. पृथूदरी (विशाल उदरवाली), ६१३. प्रवालशोभा (मूंगेके समान कान्तिसे सम्पन्न), ६१४. पिङ्‌गाक्षी, ६१५. पीतवासाः, ६१६. प्रचापला (अत्यन्त चंचल स्वभाववाली), ६१७. प्रसवा (सम्पूर्ण जगत्को उत्पन्न करनेवाली), ६१८. पुष्टिदा, ६१९. पुण्या, ६२०. प्रतिष्ठा, ६२१. प्रणवागतिः (ओंकारकी मूलरूपा), ६२२. पञ्चवर्णा, ६२३. पञ्चवाणी, ६२४. पञ्चिका, ६२५. पञ्जरस्थिता (प्राणियोंके शरीरमें स्थित रहनेवाली) ॥ ९९-१०० ॥

परमाया परज्योतिः परप्रीतिः परागतिः ।
पराकाष्ठा परेशानी पावनी पावकद्युतिः ॥ १०१ ॥
पुण्यभद्रा परिच्छेद्या पुष्पहासा पृथूदरी ।
पीताङ्‌गी पीतवसना पीतशय्या पिशाचिनी ॥ १०२ ॥
६२६. परमाया (परम मायारूपा), ६२७. परज्योतिः, ६२८. परप्रीतिः, ६२९. परागतिः, ६३०. पराकाष्ठा (ब्रह्माण्डकी अन्तिम सीमा), ६३१. परेशानी (परमेश्वरी), ६३२. पावनी, ६३३. पावकद्युतिः, ६३४. पुण्यभद्रा (पवित्र करनेमें अतीव दक्ष), ६३५. परिच्छेद्या (सबसे विलक्षण स्वभाववाली), ६३६. पुष्पहासा, ६३७, पृथूदरी, ६३८. पीताङ्‌गी, ६३९. पीतवसना, ६४०. पीतशय्या (पीले रंगकी शव्यापर शयन करनेवाली), ६४१, पिशाचिनी (पिशाचोंके गण साथमें रखनेवाली) ॥ १०१-१०२ ॥

पीतक्रिया पिशाचघ्नी पाटलाक्षी पटुक्रिया ।
पञ्चभक्षप्रियाचारा पूतनाप्राणघातिनी ॥ १०३ ॥
पुन्नागवनमध्यस्था पुण्यतीर्थनिषेविता ।
पञ्चाङ्‌गी च पराशक्तिः परमाह्लादकारिणी ॥ १०४ ॥
६४२. पीतक्रिया (मधुपानक्रियारूपा), ६४३. पिशाचजी, ६४४. पाटलाक्षी (विकसित गुलाबपुष्पसदृश नयनोंवाली), ६४५. पटुक्रिया (चतुरताके साथ कार्य सम्पन्न करनेवाली), ६४६. पञ्चभक्षप्रियाचारा (भोज्य-चळ-चोष्य-लेह्य और पेय-इन पाँचों प्रकारके पदार्थोंका प्रेमपूर्वक आहार करनेवाली), ६४७. पूतनाप्राणघातिनी (पूतनाके प्राणोंका नाश करनेवाली), ६४८. पुन्नागवनमध्यस्था (जायफलके वनके मध्य भागमें विराजमान रहनेवाली), ६४९. पुण्यतीर्थनिषेविता (पुण्यमय तीर्थों में निवास करनेवाली), ६५०, पञ्चाङ्‌गी, ६५१. पराशक्तिः, ६५२, परमाहादकारिणी (परम आनन्द प्रदान करनेवाली) ॥ १०३-१०४ ॥

पुष्पकाण्डस्थिता पूषा पोषिताखिलविष्टपा ।
पानप्रिया पञ्चशिखा पनगोपरिशायिनी ॥ १०५ ॥
पञ्चमात्रात्मिका पृध्वी पथिका पृथुदोहिनी ।
पुराणन्यायमीमांसा पाटली पुष्पगन्धिनी ॥ १०६ ॥
पुण्यप्रजा पारदात्री परमार्गैकगोचरा ।
प्रवालशोभा पूर्णाशा प्रणवा पल्लवोदरी ॥ १०७ ॥
६५३. पुष्पकाण्डस्थिता (फूलोंके डंठलोंपर स्थित रहनेवाली), ६५४. पूषा, ६५५. पोषिताखिलविष्टपा (सम्पूर्ण संसारका भरण-पोषण करनेवाली), ६५६. पानप्रिया, ६५७. पञ्चशिखा, ६५८. पन्नगोपरिशायनी (सॉपर शयन करनेवाली), ६५९. पञ्चमात्रात्मिका, ६६०. पृथ्वी, ६६१. पथिका, ६६२. पृथुदोहिनी (पर्याप्त दोहन करनेवाली), ६६३. पुराणन्यायमीमांसा (पुराण, न्याय तथा मीमांसास्वरूपिणी), ६६४. पाटली, ६६५. पुष्पगन्धिनी, ६६६. पुण्यप्रजा, ६६७. पारदात्री, ६६८, परमागैकगोचरा (एकमात्र श्रेष्ठ मार्गद्वारा अनुभवगम्य), ६६९. प्रवालशोभा (मूंगेसे सुशोभित विग्रहवाली), ६७०. पूर्णाशा, ६७१. प्रणवा (ॐकारस्वरूपिणी), ६७२. पल्लवोदरी (नवीन पल्लवके समान सुकोमल उदरवाली) ॥ १०५-१०७ ॥

फलिनी फलदा फल्गुः फूत्कारी फलकाकृतिः ।
फणीन्द्रभोगशयना फणिमण्डलमण्डिता ॥ १०८ ॥
६७३. फलिनी (फलरूपिणी), ६७४. फलदा, ६७५. फल्गुः (फल्गु नामक नदीके रूपमें विद्यमान), ६७६. फूत्कारी (क्रोधावस्थामें फूत्कार करनेवाली), ६७७. फलकाकृतिः (बाणके अग्रभागके समान आकारवाली), ६७८. फणीन्द्रभोगशयना (नागराज शेषनागके फनपर शयन करनेवाली), ६७९. फणिमण्डलमण्डिता (नागमण्डलोंसे सुशोभित) ॥ १०८ ॥

बालबाला बहुमता बालातपनिभांशुका ।
बलभद्रप्रिया वन्द्या वडवा बुद्धिसंस्तुता ॥ १०९ ॥
बन्दीदेवी बिलवती बडिशघ्नी बलिप्रिया ।
बान्धवी बोधिता बुद्धिर्बन्धूककुसुमप्रिया ॥ ११० ॥
६८०, बालबाला (बालिकाओंमें बालारूपिणी), ६८१. बहुमता, ६८२. बालातपनिभाशुका (उदयकालके सूर्यकी भाँति अरुण वस्त्र धारण करनेवाली), ६८३. बलभद्रप्रिया, ६८४. वन्द्या, ६८५. बडवा, ६८६. बुद्धिसंस्तुता, ६८७. बन्दीदेवी, ६८८. बिलवती (गुहामें रहनेवाली), ६८९, बडिशघ्नी (कपटका विनाश करनेवाली), ६९०. बलिप्रिया, ६९१. बान्धवी, ६९२. बोधिता, ६९३. बुद्धिः, ६९४. बन्धूककुसुमप्रिया (बन्धूकपुष्पसे प्रसन्न होनेवाली) ॥ १०९-११० ॥

बालभानुप्रभाकारा ब्राह्मी ब्राह्मणदेवता ।
बृहस्पतिस्तुता वृन्दा वृन्दावनविहारिणी ॥ १११ ॥
बालाकिनी बिलाहारा बिलवासा बहूदका ।
बहुनेत्रा बहुपदा बहुकर्णावतंसिका ॥ ११२ ॥
६९५. बालभानुप्रभाकारा (प्रात:कालीन सूर्यकी प्रभासे युक्त विग्रहवाली), ६९६. ब्राह्मी, ६९७. ब्राह्मणदेवता, ६९८. बृहस्पतिस्तुता, ६९९. वृन्दा, ७००. वृन्दावनविहारिणी, ७०१. बालाकिनी (बगुलोंकी पंक्तिसदृश रूपवाली), ७०२. बिलाहारा (कर्मोंके दोषका निवारण करनेवाली), ७०३. बिलवासा (बिलरूपिणी गुहामें निवास करनेवाली), ७०४. बहूदका, ७०५. बहुनेत्रा, ७०६. बहुपदा, ७०७. बहुकर्णावतंसिका (अनेक प्रकारके कर्णभूषणोंसे अलंकृत) ॥ १११-११२ ॥

बहुबाहुयुता बीजरूपिणी बहुरूपिणी ।
बिन्दुनादकलातीता बिन्दुनादस्वरूपिणी ॥ ११३ ॥
बद्धगोधाङ्‌गुलित्राणा बदर्याश्रमवासिनी ।
बृन्दारका बृहत्स्कन्धा बृहती बाणपातिनी ॥ ११४ ॥
७०८. बहुबाहुयुता, ७०९. बीजरूपिणी, ७१०. बहुरूपिणी, ७११. बिन्दुनादकलातीता (बिन्दु, नाद और कलासे सर्वथा परे), ७१२. बिन्दुनादस्वरूपिणी (बिन्दु और नादके स्वरूपवाली), ७१३. बद्‌भगोधाकलित्राणा (गोधाके चर्मका अंगुलित्राण धारण करनेवाली), ७१४, बदर्याश्रमवासिनी (बदरिकाश्रममें निवास करनेवाली), ७१५.बृन्दारका, ७१६. बृहत्स्कन्धा (विशाल कन्धोंवाली), ७१७. बृहती, ७१८. बाणपातिनी (बाणोंकी वर्षा करनेवाली) ॥ ११३-११४ ॥

वृन्दाध्यक्षा बहुनुता वनिता बहुविक्रमा ।
बद्धपद्यासनासीना बिल्वपत्रतलस्थिता ॥ ११५ ॥
बोधिद्रुमनिजावासा बडिस्था बिन्दुदर्पणा ।
बाला बाणासनवती वडवानलवेगिनी ॥ ११६ ॥
७१९. वृन्दाध्यक्षा (वृन्दा आदि कृष्णसखियोंमें प्रमुखतम), ७२०, बहुनुता (सभीके द्वारा नमस्कृत), ७२१. वनिता, ७२२. बहुविक्रमा, ७२३. बद्धपद्यासनासीना, ७२४. बिल्वपत्रतलस्थिता, ७२५. बोधिद्रुमनिजावासा (पीपलके वृक्षके नीचे अपना निवासस्थान बनानेवाली), ७२६. बडिस्था, ७२७. बिन्दुदर्पणा (अव्यक्तमायारूप दर्पणवाली), ७२८. बाला, ७२९. बाणासनवती (हाथमें धनुष धारण करनेवाली), ७३०. वडवानलवेगिनी (वडवाग्निके समान वेग धारण करनेवाली) ॥ ११५-११६ ॥

ब्रह्माण्डबहिरन्तःस्था ब्रह्मकङ्‌कणसूत्रिणी ।
भवानी भीषणवती भाविनी भयहारिणी ॥ ११७ ॥
भद्रकाली भुजङ्‌गाक्षी भारती भारताशया ।
भैरवी भीषणाकारा भूतिदा भूतिमालिनी ॥ ११८ ॥
७३१. ब्रह्माण्डबहिरन्तःस्था (ब्रह्माण्डके भीतर तथा बाहर दोनों स्थानोंमें रहनेवाली), ७३२. ब्रह्मकळूणसूत्रिणी (ब्रह्माकी कंकणसूत्रस्वरूपिणी),७३३. भवानी, ७३४, भीषणवती (दानवोंके वधके लिये भयावह रूप धारण करनेवाली), ७३५. भाविनी (जगत्की उत्पत्ति, पालन तथा संहार करनेवाली),७३६. भयहारिणी, ७३७, भद्रकाली, ७३८. भुजङ्‌गाक्षी, ७३९. भारती, ७४०. भारताशया (अपने ध्यानमें रत पुरुषोंके अन्त:करणमें विराजमान रहनेवाली), ७४१. भैरवी, ७४२. भीषणाकारा, ७४३. भूतिदा (ऐश्वर्य प्रदान करनेवाली), ७४४. भूतिमालिनी (विपुल ऐश्वयंसे सम्पन्न) ॥ ११७-११८ ॥

भामिनी भोगनिरता भद्रदा भूरिविक्रमा ।
भूतवासा भृगुलता भार्गवी भूसुरार्चिता ॥ ११९ ॥
भागीरथी भोगवती भवनस्था भिषग्वरा ।
भामिनी भोगिनी भाषा भवानी भूरिदक्षिणा ॥ १२० ॥
७४५. भामिनी, ७४६. भोगनिरता, ७४७. भद्रदा, ७४८. भूरिविक्रमा (अत्यधिक पराक्रमसे सम्पन्न), ७४९. भूतवासा (सभी प्राणियोंमें विद्यमान रहनेवाली), ७५०. भृगुलता, ७५१. भार्गवी (भृगुमुनिकी शक्तिके रूपमें विराजमान), ७५२. भूसुरार्चिता (ब्राह्मणोंके द्वारा अर्चित), ७५३. भागीरथी, ७५४. भोगवती, ७५५, भवनस्था, ७५६. भिषग्वरा (भवरोग दूर करनेके लिये श्रेष्ठ वैद्यरूपा), ७५७. भामिनी, ७५८. भोगिनी, ७५९. भाषा, ७६०. भवानी, ७६१. भूरिदक्षिणा ॥ ११९-१२० ॥

भर्गात्मिका भीमवती भवबन्धविमोचिनी ।
भजनीया भूतधात्रीरञ्जिता भुवनेश्वरी ॥ १२१ ॥
भुजङ्‌गवलया भीमा भेरुण्डा भागधेयिनी ।
माता माया मधुमती मधुजिह्वा मधुप्रिया ॥ १२२ ॥
७६२. भात्मिका (परम तेजसे सम्पन्न), ७६३. भीमवती, ७६४, भवबन्धविमोचिनी, ७६५. भजनीया, ७६६. भूतधात्रीरञ्जिता (प्राणियोंका पालन तथा अनुरंजन करनेवाली), ७६७. भुवनेश्वरी, ७६८. भुजङ्‌गवलया (साँपोंको वलयाकृतिक रूपमें हाथोंमें धारण करनेवाली), ७६९. भीमा, ७७०, भेरुण्डा (भेरुण्डा नामसे प्रसिद्ध देवी), ७७१. भागधेयिनी (परम सौभाग्यवती), ७७२. माता, ७७३. माया, ७७४. मधुमती (मधुपान करनेवाली), ७७५. मधुजिह्वा, ७७६. मधुप्रिया (मधुसे अतिशय प्रीति रखनेवाली) ॥ १२१-१२२ ॥

महादेवी महाभागा मालिनी मीनलोचना ।
मायातीता मधुमती मधुमांसा मधुद्रवा ॥ १२३ ॥
मानवी मधुसम्भूता मिथिलापुरवासिनी ।
मधुकैटभसंहर्त्री मेदिनी मेघमालिनी ॥ १२४ ॥
७७७. महादेवी, ७७८. महाभागा, ७७९. मालिनी, ७८०, मीनलोचना (मछलीके समान नेत्रोंवाली), ७८१. मायातीता, ७८२. मधुमती, ७८३. मधुमांसा, ७८४. मधुद्रवा (मधुका अर्पण करनेसे भक्तोंपर द्रवित होनेवाली), ७८५. मानवी (मानवरूप धारण करनेवाली), ७८६. मधुसम्भूता (चैत्रमासमें प्रकट होनेवाली), ७८७. मिथिलापुरवासिनी (मिथिलापुरीमें निवास करनेवाली सीतास्वरूपिणी), ७८८. मधुकैटभसंही (मधु तथा कैटभ दानवोंका संहार करनेवाली), ७८९. मेदिनी (पृथ्वीस्वरूपिणी), ७९०, मेघमालिनी (मेघमालाओंसे घिरी हुई) ॥ १२३-१२४ ॥

मन्दोदरी महामाया मैथिली मसृणप्रिया ।
महालक्ष्मीर्महाकाली महाकन्या महेश्वरी ॥ १२५ ॥
माहेन्द्री मेरुतनया मन्दारकुसुमार्चिता ।
मब्दमज्जीरचरणा मोक्षदा मञ्जुभाषिणी ॥ १२६ ॥
७९१. मन्दोदरी, ७९२. महामाया, ७९३. मैथिली, ७९४. मसृणप्रिया (मधुर पदार्थोंसे प्रेम करनेवाली), ७९५. महालक्ष्मीः , ७९६. महाकाली, ७९७, महाकन्या, ७९८. महेश्वरी, ७९९. माहेन्द्री (शचीके रूपमें विराजमान), ८००. मेरुतनया, ८०१, मन्दारकुसुमार्चिता (मन्दारपुष्पसे पूजित होनेवाली), ८०२. मञ्जमजीरचरणा (चरणोंमें सुन्दर पायल धारण करनेवाली), ८०३. मोक्षदा, ८०४. मजुभाषिणी ॥ १२५-१२६ ॥

मधुरद्राविणी मुद्रा मलया मलयान्विता ।
मेधा मरकतश्यामा मागधी मेनकात्मजा ॥ १२७ ॥
महामारी महावीरा महाश्यामा मनुस्तुता ।
मातृका मिहिराभासा मुकुन्दपदविक्रमा ॥ १२८ ॥
८०५. मधुरद्राविणी (भक्तिसे द्रवित होकर मधुर वचन बोलनेवाली), ८०६. मुद्रा, ८०७. मलया (मलयाचलपर निवास करनेवाली), ८०८. मलयान्विता (मलयगिरि चन्दनसे युक्त), ८०९. मेधा, ८१०. मरकतश्यामा (मरकतमणिके सदृश श्याम वर्णवाली), ८११. मागधी, ८१२. मेनकात्मजा, ८१३. महामारी, ८१४. महावीरा, ८१५. महाश्यामा, ८१६. मनुस्तुता (मनुके द्वारा स्तुत), ८१७. मातृका, ८१८. मिहिराभासा (सूर्यके समान प्रभावाली), ८१९. मुकुन्दपदविक्रमा (भगवान् विष्णुके पदका अनुसरण करनेवाली) ॥ १२७-१२८ ॥

मूलाधारस्थिता मुग्धा मणिपूरकवासिनी ।
मृगाक्षी महिषारूढा महिषासुरमर्दिनी ॥ १२९ ॥
८२०, मूलाधारस्थिता (मूलाधारचक्रमें कुण्डलिनीके रूपमें स्थित रहनेवाली), ८२१. मुग्धा (सर्वदा प्रसन्नचित्त रहनेवाली),८२२. मणिपूरकवासिनी (मणिपूर नामक चक्रमें निवास करनेवाली), ८२३. मृगाक्षी (मृगके समान नेत्रोंवाली), ८२४. महिषारूढा (महिषपर आरूढ़ होनेवाली), ८२५. महिषासुरमर्दिनी (महिष नामक दानवका वध करनेवाली) ॥ १२९ ॥

योगासना योगगम्या योगा यौवनकाश्रया ।
यौवनी युद्धमध्यस्था यमुना युगधारिणी ॥ १३० ॥
यक्षिणी योगयुक्ता च यक्षराजप्रसूतिनी ।
यात्रा यानविधानज्ञा यदुवंशसमुद्‍भवा ॥ १३१ ॥
८२६. योगासना, ८२७. योगगम्या, ८२८. योगा, ८२९. यौवनकाश्रया (सदा यौवनावस्थामें विराजमान), ८३०. यौवनी, ८३१. युद्धमध्यस्था, ८३२. यमुना, ८३३. युगधारिणी, ८३४. यक्षिणी, ८३५. योगयुक्ता, ८३६. यक्षराजप्रसूतिनी (यक्षराजको उत्पन्न करनेवाली), ८३७. यात्रा, ८३८. यानविधानज्ञा (विमानोंकी व्यवस्थाका विशेष ज्ञान रखनेवाली),८३९. यदुवंशसमुद्‌भवा (यदुवंशमें प्रादुर्भूत देवी) ॥ १३०-१३१ ॥

यकारादिहकारान्ता याजुषी यज्ञरूपिणी ।
यामिनी योगनिरता यातुधानभयङ्‌करी ॥ १३२ ॥
८४०. यकारादिहकारान्ता (यकारसे लेकर हकारतक सभी वर्गों के रूपवाली), ८४१, याजुषी (यजुर्वेदस्वरूपिणी),८४२. यज्ञरूपिणी, ८४३. यामिनी, ८४४. योगनिरता, ८४५. यातुधानभयङ्‌करी (राक्षसोंको भय उत्पन्न करनेवाली) ॥ १३२ ॥

रुक्मिणी रमणी रामा रेवती रेणुका रतिः ।
रौद्री रौद्रप्रियाकारा राममाता रतिप्रिया ॥ १३३ ॥
रोहिणी राज्यदा रेवा रमा राजीवलोचना ।
राकेशी रूपसम्पन्ना रत्‍नसिंहासनस्थिता ॥ १३४ ॥
८४६. रुक्मिणी, ८४७. रमणी, ८४८. रामा, ८४९. रेवती, ८५०. रेणुका, ८५१. रतिः, ८५२. रौद्री, ८५३. रौद्रप्रियाकारा (रौद्र आकृतिसे प्रीति करनेवाली), ८५४. राममाता (कौसल्यारूपमें विराजमान), ८५५. रतिप्रिया, ८५६. रोहिणी, ८५७. राज्यदा, ८५८. रेवा (नर्मदासंज्ञक नदी), ८५९. रमा, ८६०. राजीवलोचना, ८६१. राकेशी, ८६२. रूपसम्पन्ना, ८६३. रत्नसिंहासनस्थिता (रत्नसे निर्मित सिंहासनपर विराजमान रहनेवाली) ॥ १३३-१३४ ॥

रक्तमाल्याम्बरधरा रक्तगन्धानुलेपना ।
राजहंससमारूढा रम्भा रक्तबलिप्रिया ॥ १३५ ॥
रमणीययुगाधारा राजिताखिलभूतला ।
रुरुचर्मपरीधाना रथिनी रत्‍नमालिका ॥ १३६ ॥
८६४. रक्तमाल्याम्बरधरा, ८६५. रक्तगन्धानुलेपना, ८६६. राजहंससमारूढा, ८६७. रम्भा, ८६८. रक्तबलिप्रिया, ८६९. रमणीययुगाधारा (रमणीय युगकी आश्रयस्वरूपिणी), ८७०. राजिताखिलभूतला (सम्पूर्ण पृथ्वीतलको सुशोभित करनेवाली), ८७१, रुरुचर्मपरीधाना (मृगचर्मको वस्त्रके रूपमें धारण करनेवाली),८७२. रथिनी, ८७३. रत्नमालिका ॥ १३५-१३६ ॥

रोगेशी रोगशमनी राविणी रोमहर्षिणी ।
रामचन्द्रपदाक्रान्ता रावणच्छेदकारिणी ॥ १३७ ॥
रत्‍नवस्त्रपरिच्छन्ना रथस्था रुक्मभूषणा ।
लज्जाधिदेवता लोला ललिता लिङ्‌गधारिणी ॥ १३८ ॥
८७४. रोगेशी (रोगोंपर शासन करनेवाली), ८७५. रोगशमनी, ८७६. राविणी (भयावह गर्जन करनेवाली),८७७. रोमहर्षिणी, ८७८. रामचन्द्रपदाक्रान्ता, ८७९. रावणच्छेदकारिणी (रावणका संहार करनेवाली), ८८०. रत्नवस्त्रपरिच्छन्ना (रत्न तथा वस्त्रोंसे सम्यक् आच्छादित), ८८१. रथस्था, ८८२. रुक्मभूषणा (स्वर्णमय आभूषणोंसे सुशोभित),८८३. लज्जाधिदेवता, ८८४. लोला (अत्यन्त चंचल स्वभाववाली), ८८५. ललिता, ८८६. लिङ्‌गधारिणी ॥ १३७-१३८ ॥

लक्ष्मीर्लोला लुप्तविषा लोकिनी लोकविश्रुता ।
लज्जा लम्बोदरी देवी ललना लोकधारिणी ॥ १३९ ॥
८८७. लक्ष्मीः , ८८८. लोला, ८८९. लुप्तविषा (विषसे निष्प्रभावित रहनेवाली),८९०. लोकिनी, ८९१. लोकविश्रुता, ८९२. लज्जा, ८९३. लम्बोदरीदेवी, ८९४. ललना (स्त्रीस्वरूपा), ८९५. लोकधारिणी ॥ १३९ ॥

वरदा वन्दिता विद्या वैष्णवी विमलाकृतिः ।
वाराही विरजा वर्षा वरलक्ष्मीर्विलासिनी ॥ १४० ॥
विनता व्योममध्यस्था वारिजासनसंस्थिता ।
वारुणी वेणुसम्भूता वीतिहोत्रा विरूपिणी ॥ १४१ ॥
८९६. वरदा, ८९७. वन्दिता, ८९८. विद्या, ८९९. वैष्णवी, ९००. विमलाकृतिः, ९०१. वाराही (वराहरूप धारण करनेवाली), ९०२. विरजा, ९०३. वर्षा (वृष्टिरूपा), ९०४. वरलक्ष्मी:, ९०५. विलासिनी, ९०६, विनता, २०७. व्योममध्यस्था, ९०८. वारिजासनसंस्थिता (कमलके आसनपर विराजमान रहनेवाली), ९०९. वारुणी (वरुणकी शक्तिस्वरूपिणी), ९१०. वेणुसम्भूता (बाँससे प्रकट होनेवाली), ९११. वीतिहोत्रा (अग्निस्वरूपिणी), ९१२. विरूपिणी (विशिष्टरूपसे सम्पन्न) ॥ १४०-१४१ ॥

वायुमण्डलमध्यस्था विष्णुरूपा विधिप्रिया ।
विष्णुपत्‍नी विष्णुमती विशालाक्षी वसुन्धरा ॥ १४२ ॥
वामदेवप्रिया वेला वज्रिणी वसुदोहिनी ।
वेदाक्षरपरीताङ्‌गी वाजपेयफलप्रदा ॥ १४३ ॥
वासवी वामजननी वैकुण्ठनिलया वरा ।
व्यासप्रिया वर्मधरा वाल्मीकिपरिसेविता ॥ १४४ ॥
९१३. वायुमण्डलमध्यस्था, ९१४. विष्णुरूपा, ९१५. विधिप्रिया, ९१६. विष्णुपत्नी, ९१७. विष्णुमती, ९१८. विशालाक्षी (विशाल नेत्रोंवाली), ९१९. वसुन्धरा, ९२०. वामदेवप्रिया (रुद्राणीरूपसे विद्यमान), ९२१. वेला (समयकी अधिष्ठात्री देवी), ९२२. वत्रिणी, ९२३. वसुदोहिनी (सम्पदाका दोहन करनेवाली), ९२४. वेदाक्षरपरीताङ्‌गी (वेदाक्षरोंसे युक्त अंगोवाली), ९२५. वाजपेयफलप्रदा (वाजपेययज्ञका फल प्रदान करनेवाली), ९२६. वासवी, ९२७. बामजननी (वामदेवकी जननी), ९२८. वैकुण्ठनिलया, ९२९. वरा, ९३०. व्यासप्रिया, ९३१. वर्मधरा (कवच धारण करनेवाली), ९३२. वाल्मीकिपरिसेविता (वाल्मीकिके द्वारा भलीभाँति सेवित) ॥ १४२-१४४ ॥

शाकम्भरी शिवा शान्ता शारदा शरणागतिः ।
शातोदरी शुभाचारा शुम्भासुरविमर्दिनी ॥ १४५ ॥
शोभावती शिवाकारा शङ्‌करार्धशरीरिणी ।
शोणा शुभाशया शुभ्रा शिरःसन्धानकारिणी ॥ १४६ ॥
९३३. शाकम्भरी (शाकम्भरीदेवी नामसे प्रसिद्ध), ९३४, शिवा, ९३५. शान्ता, १३६. शारदा, ९३७. शरणागतिः, ९३८. शातोदरी (तेजसे युक्त उदरवाली), ९३९. शुभाचारा (पवित्र आचरणवाली), ९४०, शुम्भासुरविमर्दिनी (शुम्भ नामक दानवका वध करनेवाली), ९४१. शोभावती, ९४२. शिवाकारा (कल्याणमयी आकृति धारण करनेवाली), ९४३. शङ्‌करार्धशरीरिणी (शिवकी अर्धागिनी), ९४४. शोणा (रक्त वर्णवाली), ९४५. शुभाशया (मंगलकारी अभिप्रायसे युक्त), ९४६. शुभा, १४७. शिरःसन्धानकारिणी (दैत्योंके मस्तकपर संधान करनेवाली) ॥ १४५-१४६ ॥

शरावती शरानन्दा शरज्ज्योत्स्ना शुभानना ।
शरभा शूलिनी शुद्धा शबरी शुकवाहना ॥ १४७ ॥
श्रीमती श्रीधरानन्दा श्रवणानन्ददायिनी ।
शर्वाणी शर्वरीवन्द्या षड्भाषा षड्‌ऋतुप्रिया ॥ १४८ ॥
९४८. शरावती (बाणोंसे रक्षा करनेवाली), ९४९. शरानन्दा (आनन्दपूर्वक बाणका संचालन करनेवाली), ९५०. शरज्योत्स्ना (शरत्कालीन चन्द्रमाके समान धवल किरणोंवाली), ९५१. शुभानना, ९५२. शरभा (हरिणी-स्वरूपा), ९५३. शूलिनी, ९५४. शुद्धा. ९५५. शबरी, ९५६. शुकवाहना (शुकपर सवार होनेवाली), ९५७. श्रीमती, ९५८. श्रीधरानन्दा (विष्णुको आनन्द प्रदान करनेवाली), ९५९. श्रवणानन्ददायिनी (देवी-चरित्र सुननेसे भक्तोंको आनन्द प्रदान करनेवाली), ९६०. शर्वाणी (शंकरकी शक्तिरूपा भगवती पार्वती), १६१. शर्वरीवन्द्या (रात्रिमें पूजित होनेवाली), ९६२. षड्भाषा (छ: भाषाओंके रूपवाली), ९६३. षड्ऋतुप्रिया (सभी छः ऋतुओंसे प्रीति रखनेवाली) ॥ १४७-१४८ ॥

षडाधारस्थिता देवी षण्मुखप्रियकारिणी ।
षडङ्‌गरूपसुमतिसुरासुरनमस्कृता ॥ १४९ ॥
सरस्वती सदाधारा सर्वमङ्‌गलकारिणी ।
सामगानप्रिया सूक्ष्मा सावित्री सामसम्भवा ॥ १५० ॥
९६४. षडाधारस्थितादेवी (छ: प्रकारके आधारोंमें विराजमान होनेवाली भगवती), ९६५. षण्मुखप्रियकारिणी (कार्तिकेयका प्रिय करनेवाली), ९६६. षडङ्‌गरूपसुमतिसुरासुरनमस्कृता (षडंग रूपवाले सुमति नामक देवताओं तथा असुरोंद्वारा नमस्कृत), ९६७. सरस्वती, ९६८. सदाधारा (सत्यपर प्रतिष्ठित रहनेवाली), ९६९. सर्वमङ्‌गलकारिणी (सबका कल्याण करनेवाली), ९७०. सामगानप्रिया, ९७१. सूक्ष्मा, ९७२. सावित्री, ९७३. सामसम्भवा (सामवेदसे प्रादुर्भूत होनेवाली) ॥ १४९-१५० ॥

सर्वावासा सदानन्दा सुस्तनी सागराम्बरा ।
सर्वैश्वर्यप्रिया सिद्धिः साधुबन्धुपराक्रमा ॥ १५१ ॥
सप्तर्षिमण्डलगता सोममण्डलवासिनी ।
सर्वज्ञा सान्द्रकरुणा समानाधिकवर्जिता ॥ १५२ ॥
९७४. सर्वावासा (सबमें व्याप्त रहनेवाली), ९७५. सदानन्दा, ९७६. सुस्तनी, ९७७. सागराम्बरा (वस्वके रूपमें सागरको धारण करनेवाली), ९७८. सर्वैश्वर्यप्रिया (समस्त ऐश्वर्योसे प्रेम करनेवाली), ९७९. सिद्धिः, ९८०. साधुबन्धुपराक्रमा (सज्जनों तथा प्रिय भक्तजनोंके लिये पराक्रम प्रदर्शित करनेवाली), ९८१. सप्तर्षिमण्डलगता, ९८२. सोममण्डलवासिनी (चन्द्रमण्डलमें विराजमान रहनेवाली), ९८३. सर्वज्ञा, ९८४. सान्द्रकरुणा (अतीव करुणामयी), ९८५. समानाधिकवर्जिता (सदा एक समान रहनेवाली) ॥ १५१-१५२ ॥

सर्वोत्तुङ्‌गा सङ्‌गहीना सद्‌गुणा सकलेष्टदा ।
सरघा सूर्यतनया सुकेशी सोमसंहतिः ॥ १५३ ॥
९८६. सर्वोत्तुङ्‌गा (सर्वोच्च स्थान रखनेवाली), ९८७. सङ्‌गहीना (आसक्तिभावनासे रहित), ९८८. सद्‌गुणा, ९८९. सकलेष्टदा (सभी अभीष्ट फल प्रदान करनेवाली), ९९०. सरघा (मधुमक्षिकास्वरूपिणी), ९९१. सूर्यंतनया (सूर्यपुत्री), ९९२. सुकेशी (सुन्दर केशोंसे सम्पन्न), ९९३. सोमसंहतिः (अनेक चन्द्रमाओंकी शोभासे सम्पन्न) ॥ १५३ ॥

हिरण्यवर्णा हरिणी ह्रींकारी हंसवाहिनी ।
क्षौमवस्त्रपरीताङ्‌गी क्षीराब्धितनया क्षमा ॥ १५४ ॥
गायत्री चैव सावित्री पार्वती च सरस्वती ।
वेदगर्भा वरारोहा श्रीगायत्री पराम्बिका ॥ १५५ ॥
९९४. हिरण्यवर्णा (स्वर्णके समान वर्णवाली), ९९५. हरिणी, ९९६. ह्रींकारी (ह्रीं-बीजस्वरूपिणी), ९९७. हंसवाहिनी (हंसपर सवार होनेवाली), ९९८. क्षौमवस्त्रपरीताड़ी (रेशमी वस्त्रोंसे ढंके हए अंगोंवाली), १९९. क्षीराब्धितनया (क्षीरसागरकी पुत्रीस्वरूपा), १०००. क्षमा, १००१. गायत्री, १००२. सावित्री, १००३. पार्वती, १००४. सरस्वती, १००५. वेदगर्भा, १००६. वरारोहा, १००७. श्रीगायत्री, १००८. पराम्बिका ॥ १५४-१५५ ॥

इति साहस्रकं नाम्नां गायत्र्याश्चैव नारद ।
पुण्यदं सर्वपापघ्नं महासम्पत्तिदायकम् ॥ १५६ ॥
हे नारद ! भगवती गायत्रीका यह सहस्रनाम है । यह अत्यन्त पुण्यदायक, सभी पापोंका नाश करनेवाला तथा विपुल सम्पदाओंको प्रदान करनेवाला है । १५६ ॥

एवं नामानि गायत्र्यास्तोषोत्पत्तिकराणि हि ।
अष्टम्यां च विशेषेण पठितव्यं द्विजैः सह ॥ १५७ ॥
जपं कृत्वा होमपूजाध्यानं कृत्वा विशेषतः ।
यस्मै कस्मै न दातव्यं गायत्र्यास्तु विशेषतः ॥ १५८ ॥
सुभक्ताय सुशिष्याय वक्तव्यं भूसुराय वै ।
भ्रष्टेभ्यः साधकेभ्यश्च बान्धवेभ्यो न दर्शयेत् ॥ १५९ ॥
इस प्रकार कहे गये ये नाम गायत्रीको सन्तुष्टि प्रदान करनेवाले हैं । ब्राह्मणोंके साथ विशेष करके अष्टमी तिथिको इस सहस्रनामका पाठ करना चाहिये । भलीभांति जप, होम, पूजा और ध्यान करके इसका पाठ करना चाहिये । जिस किसीको भी इस गायत्रीसहस्रनामका उपदेश नहीं करना चाहिये; अपितु योग्य भक्त, उत्तम शिष्य तथा ब्राह्मणको ही इसे बताना चाहिये । पथभ्रष्ट साधकों अथवा ऐसे अपने बन्धुओंके भी समक्ष इसे प्रदर्शित नहीं करना चाहिये ॥ १५७-१५९ ॥

यद्‌गृहे लिखितं शास्त्रं भयं तस्य न कस्यचित् ।
चञ्चलापि स्थिरा भूत्वा कमला तत्र तिष्ठति ॥ १६० ॥
जिस व्यक्तिके घरमें यह गायत्रीसम्बन्धी शास्त्र लिखा होता है, उसे किसीका भी भय नहीं रहता और अत्यन्त चपल लक्ष्मी भी उस घरमें स्थिर होकर विराजमान रहती हैं । १६० ॥

इदं रहस्यं परमं गुह्याद् गुह्यतरं महत् ।
पुण्यप्रदं मनुष्याणां दरिद्राणां निधिप्रदम् ॥ १६१ ॥
मोक्षप्रदं मुमुक्षूणां कामिनां सर्वकामदम् ।
रोगाद्वै मुच्यते रोगी बद्धो मुच्येत बन्धनात् ॥ १६२ ॥
बह्महत्यासुरापानसुवर्णस्तेयिनो नराः ।
गुरुतल्पगतो वापि पातकान्मुच्यते सकृत् ॥ १६३ ॥
यह परम रहस्य गुह्यसे भी अत्यन्त गुह्य है । यह मनुष्योंको पुण्य प्रदान करानेवाला, दरिद्रोंको सम्पत्ति सुलभ करानेवाला, मोक्षकी अभिलाषा रखनेवालोंको मोक्षप्राप्ति करानेवाला तथा सकाम पुरुषोंको समस्त अभीष्ट फल प्रदान करनेवाला है । इस सहस्रनामके प्रभावसे रोगी रोगमुक्त हो जाता है तथा बन्धनमें पड़ा हुआ मनुष्य बन्धनसे छूट जाता है । ब्रह्महत्या, सरापान, स्वर्णकी चोरी तथा गुरुपत्नीगमनसदृश महान् पाप करनेवाले भी इसके एक बारके पाठसे पापमुक्त हो जाते हैं ॥ १६१-१६३ ॥

असत्पतिग्रहाच्चैवाभक्ष्यभक्षाद्विशेषतः ।
पाखण्डानृतमुख्येभ्यः पठनादेव मुच्यते ॥ १६४ ॥
इदं रहस्यममलं मयोक्तं पद्मजोद्‍भव ।
स्त्रह्मसायुज्यदं नृणां सत्यं सत्यं न संशयः ॥ १६५ ॥
इसका पाठ करनेसे मनुष्य निन्दनीय दान लेने, अभक्ष्यभक्षण करने, पाखण्डपूर्ण व्यवहार करने और मिथ्याभाषण करने आदि प्रमुख पापोंसे मुक्त हो जाता है । हे ब्रह्मापुत्र नारद ! मेरे द्वारा कहा गया यह परम पवित्र रहस्य मनुष्योंको ब्रह्मसायुज्य प्रदान करनेवाला है । यह बात सत्य है, सत्य है । इसमें सन्देह नहीं है ॥ १६४-१६५ ॥

इति श्रीमद्देवीभागवते महापुराणेऽष्टादशसाहस्र्यां संहितायां
द्वादशस्कन्धे गायत्रीसहस्रनामस्तोत्रवर्णनं नाम षष्ठोऽध्यायः ॥ ६ ॥
इति श्रीमद्देवीभागवते महापुराणेऽष्टादशसाहस्रया संहितायां द्वादशस्कन्धे गायत्रीसहस्रनामस्तोत्रवर्णनं नाम षष्ठोऽध्यायः ॥ ६ ॥


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