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॥ श्रीगणेशाय नमः श्रीगौरीशंकराभ्यां नमः ॥

॥ श्रीशिवमहापुराणम् ॥

तृतीया शतरुद्रसंहितायां

सप्तदशोऽध्यायः

शिवदशावतारवर्णनम् -
भगवान् शिवके महाकाल आदि प्रमुख दस अवतारोंका वर्णन -


शृण्वथो गिरिशस्याद्यावतारान् दशसंख्यकान् ।
महाकालमुखान् भक्त्योपासनाकाण्डसेवितान् ॥ १ ॥
नन्दीश्वर बोले-[हे सनत्कुमार !] अब आप उपासनाकाण्डद्वारा सेवित महेश्वरके सर्वप्रथम होनेवाले महाकाल आदि दस प्रमुख अवतारोंको भक्तिपूर्वक सुनिये ॥ १ ॥

तत्राद्यो हि महाकालो भुक्तिमुक्तिप्रदः सताम् ।
शक्तिस्तत्र महाकाली भक्तेप्सितफलप्रदा ॥ २ ॥
उनमें प्रथम महाकाल नामक अवतार है, जो सज्जनोंको भोग एवं मोक्ष प्रदान करनेवाला है । [इस अवतारमें] उनकी शक्ति महाकाली हैं, जो भक्तोंको अभीष्ट फल प्रदान करती हैं ॥ २ ॥

तारनामा द्वितीयश्च ताराशक्तिस्तथैव सा ।
भुक्तिमुक्तिप्रदौ चोभौ स्वसेवकसुखप्रदौ ॥ ३ ॥
दूसरा अवतार तार नामसे विख्यात है, जिनकी शक्ति तारा हैं । ये दोनों ही अपने भक्तोंको सुख प्रदान करनेवाले एवं भोग तथा मोक्ष देनेवाले हैं ॥ ३ ॥

भुवनेशो हि बालाह्वस्तृतीयः परिकीर्तितः ।
भुवनेशी शिवा तत्र बालाह्वा सुखदा सताम् ॥ ४ ॥
श्रीविद्येशः षोडशाह्वः श्रीर्विद्या षोडशी शिवा ।
चतुर्थो भक्त सुखदो भुक्तिमुक्तिफलप्रदः ॥ ५ ॥
तीसरा अवतार बाल भुवनेश्वरके नामसे पुकारा जाता है । उनकी शक्ति बाला भुवनेश्वरी कही जाती हैं, ये सत्पुरुषोंको सुख प्रदान करती हैं । चौथा अवतार षोडश नामक विद्येशके रूपमें हुआ है । षोडशी श्रीविद्या उनकी महाशक्ति हैं । यह अवतार भक्तोंको सुख प्रदान करनेवाला तथा भोग एवं मोक्ष देनेवाला है ॥ ४-५ ॥

पञ्चमो भैरवः ख्यातः सर्वदा भक्तकामदः ।
भैरवी गिरिजा तत्र सदुपासककामदा ॥ ६ ॥
पाँचवाँ अवतार भैरव नामसे प्रसिद्ध है, जो भक्तोंकी कामनाओंको निरन्तर पूर्ण करनेवाला है । इनकी महाशक्ति गिरिजा भैरवी नामसे प्रसिद्ध हैं, जो सज्जनों एवं उपासकोंकी कामनाएँ पूर्ण करती हैं ॥ ६ ॥

छिन्नमस्तकनामासौ शिवः षष्ठः प्रकीर्तितः ।
भक्तकामप्रदा चैव गिरिजा छिन्नमस्तका ॥ ७ ॥
शिवका छठा अवतार छिन्नमस्तक नामक कहा गया है और उनकी महाशक्ति छिन्नमस्तका गिरिजा हैं, जो अपने भक्तोंका मनोरथ पूर्ण करनेवाली हैं ॥ ७ ॥

धूमवान् सप्तमः शम्भुः सर्वकामफलप्रदः ।
धूमवती शिवा तत्र सदुपासककामदा ॥ ८ ॥
शिवके सातवें अवतारका नाम धूमवान् है, जो सम्पूर्ण कामनाओंका फल प्रदान करनेवाला है । उनकी शक्ति धूमावती हैं, जो सज्जन उपासकोंको फल देनेवाली हैं ॥ ८ ॥

शिवावतारः सुखदो ह्यष्टमो बगलामुखः ।
शक्तिस्तत्र महानन्दा विख्याता बगलामुखी ॥ ९ ॥
शिवजीका आठवाँ अवतार बगलामुख है, जो सुख देनेवाला है । उनकी शक्ति बगलामुखी कही गयी हैं, जो परम आनन्दस्वरूपिणी हैं ॥ ९ ॥

शिवावतारो मातङ्‌गो नवमः परिकीर्तितः ।
मातंगी तत्र शर्वाणी सर्वकामफलप्रदा ॥ १० ॥
शिवजीका नौवाँ अवतार मातंग नामसे विख्यात है और उनकी शक्ति मातंगी हैं, जो [अपने भक्तोंकी] समस्त कामनाओंका फल प्रदान करती हैं ॥ १० ॥

दशमः कमलः शम्भुर्भुक्तिमुक्तिफलप्रदः ।
कमला गिरिजा तत्र स्वभक्तपरिपालिनी ॥ ११ ॥
शिवजीका कल्याणकारी दसवाँ अवतार कमल नामवाला है, जो भोग और मोक्ष देनेवाला है । उनकी शक्ति पार्वतीका नाम कमला है, जो भक्तोंका पालन करती हैं ॥ ११ ॥

एते दशमिताः शैवा अवताराः सुखप्रदाः ।
भुक्तिमुक्तिप्रदाश्चैव भक्तानां सर्वदाः सताम् ॥ १२ ॥
शिवजीके ये दस अवतार हैं, जो सज्जनों एवं भक्तोंको सर्वदा सुख देनेवाले तथा उन्हें भुक्ति एवं मुक्ति प्रदान करनेवाले हैं ॥ १२ ॥

एते दशावतारा हि शंकरस्य महात्मनः ।
नानासुखप्रदा नित्यं सेवतां निर्विकारतः ॥ १ ३ ॥
एतद्दशावताराणां माहात्म्यं वर्णितं मुने ।
सर्वकामप्रदं ज्ञेयं तंत्रशास्त्रादिगर्भितम् ॥ १४ ॥
महात्मा शिवके ये दसों अवतार निर्विकार रूपसे सेवा करनेवालोंको निरन्तर सभी प्रकारके सुख देते रहते हैं । हे मुने ! मैंने शंकरजीके इन दसों अवतारोंके माहात्म्यका वर्णन किया है, इस माहात्म्यको सम्पूर्ण कामनाओंको देनेवाला कहा गया है तथा यह तन्त्रशास्त्रोंमें निगूढ़ है, ऐसा जानना चाहिये ॥ १३-१४ ॥

एतासामादिशक्तीनामद्भुतो महिमा मुने ।
सर्वकामप्रदो ज्ञेयस्तत्रंशास्त्रादिगर्भितः ॥ १५ ॥
शत्रुमारणकार्यादौ तत्तच्छक्तिः परा मता ।
खल दण्डकरी नित्यं ब्रह्मतेजोविवर्द्धिनी ॥ १६ ॥
हे मुने ! इन [अवतारोंकी] आदि शक्तियोंकी महिमा भी अद्‌भुत है । इसे सभी कामनाओंको प्रदान करनेवाली तथा तन्त्रशास्त्र आदिमें गोपित जानना चाहिये । ये शक्तियाँ दुष्टोंको दण्ड देनेवाली तथा ब्रह्मतेजका विवर्धन करनेवाली हैं और शत्रुनिग्रह आदि कार्यके लिये सर्वश्रेष्ठ कही गयी हैं ॥ १५-१६ ॥

इत्युक्तास्ते मया ब्रह्मन्नवतारा महेशितुः ।
सशक्तिका दशमिता महाकालमुखाः शुभाः ॥ १७ ॥
हे ब्रान् ! इस प्रकार मैंने शक्तियोंसहित शिवजीके महाकालादि प्रमुख शुभ दस अवतारोंका वर्णन किया ॥ १७ ॥

शैवपर्वसु सर्वेषु योऽधीते भक्तितत्परः ।
एतदाख्यानममलं सोतिशम्भुप्रियो भवेत् ॥ १८ ॥
ब्रह्मणो ब्रह्मवर्चस्वी क्षत्रियो विजयी भवेत ।
धनाधिपो हि वैश्यः स्याच्छूद्रः सुखमवाप्नुयात् ॥ १९ ॥
जो भक्तिमें तत्पर होकर सभी शैव पोंमें शिवके इस निर्मल इतिहासको पढ़ता है, वह शिवका अत्यन्त प्रिय हो जाता है; ब्राह्मण ब्रह्मतेजसे युक्त तथा क्षत्रिय विजयी हो जाता है, वैश्य धनाधिपति हो जाता है एवं शूद्र सुख प्राप्त करता है ॥ १८-१९ ॥

शांकरा निजधर्मस्थाः शृण्वन्तश्चरितन्त्विदम् ।
सुखिनः स्युर्विशेषेण शिवभक्ता भवन्तु च ॥ २० ॥
अपने धर्ममें स्थित होकर इस चरित्रको सुननेवाले शिवभक्त सुखी हो जाते हैं और वे विशेषरूपसे शिवके भक्त हो जाते हैं ॥ २० ॥

इति श्रीशिवमहापुराणे तृतीयायां शतरुद्रसंहितायां
शिवदशावतारवर्णनं नाम सप्तदशोऽध्यायः ॥ १७ ॥
॥ इस प्रकार श्रीशिवमहापुराणके अन्तर्गत तृतीय शतरुद्रसंहितामें शिवदशावतार वर्णन नामक सत्रहवां अध्याय पूर्ण हुआ ॥ १७ ॥



श्रीगौरीशंकरार्पणमस्तु


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